"13 May":
जाने कितने गुनाहों की सजा साथ चलती हैं,
पर अब तनहा न रहते दुवाए साथ रहती हैं,
उन कश्तियों के पलटने पर सदमा ना होता,
समुन्दर की लहरें आँचल बिछाये बहती हैं...
जाने कितने गुनाहों की सजा साथ चलती हैं,
पर अब तनहा न रहते दुवाए साथ रहती हैं,
उन कश्तियों के पलटने पर सदमा ना होता,
समुन्दर की लहरें आँचल बिछाये बहती हैं...
गिरते वक़्त भी जख्मों को सहेज लेते ए दोस्त,
इसी बहाने ही उनके हाथों की लकीरे..
मुक्कदर में जन्नत के सितारे उड़ेलती जाती हैं...
कितनी गर्दिसों में पनपते उनके सितारे ए मौला,
जिनके ताजों में माँ की आयतें ना चमकती हैं...
इसी बहाने ही उनके हाथों की लकीरे..
मुक्कदर में जन्नत के सितारे उड़ेलती जाती हैं...
कितनी गर्दिसों में पनपते उनके सितारे ए मौला,
जिनके ताजों में माँ की आयतें ना चमकती हैं...
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