जिंदगी कभी ऐसी गूँज भी सुनाती हैं,
बशर को शायरों के चौबारे पहुचती हैं,
मोती लादे नयनो में कोई झाके तो सही,
कितने किस्से की झलकियाँ दिखलाती हैं...
बशर को शायरों के चौबारे पहुचती हैं,
मोती लादे नयनो में कोई झाके तो सही,
कितने किस्से की झलकियाँ दिखलाती हैं...
कभी बुलाती वो पीले पत्र ओढ़े हुए,
तो कभी जेबों से सूखे नज्म खुलवाती हैं...
रात कुरेदता पुराने जख्मो को लिए ऐसे,
की बासी यादों के बने पुलाव सनवाती हैं...
देखते उड़कर कटे लुढ़कते उन पतंगों को,
ज़िन्दगी भी जाने कितने मंझे कटवाती हैं..
तो कभी जेबों से सूखे नज्म खुलवाती हैं...
रात कुरेदता पुराने जख्मो को लिए ऐसे,
की बासी यादों के बने पुलाव सनवाती हैं...
देखते उड़कर कटे लुढ़कते उन पतंगों को,
ज़िन्दगी भी जाने कितने मंझे कटवाती हैं..
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