ये चाँद भी जुड़वा होता है क्या।
काशी का चाँद काबे का चाँद,
ये चाँद भी जुड़वा होता है क्या।
विमल का चाँद शाहिद का चाँद,
ये चाँद भी जुड़वा होता है क्या।
सोचिएगा जरा।ईद मुबारक
©खामोशियाँ-२०१४//(२८-जून-२०१४)
भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
आज आसमान की ओर देख रहा था तो कुछ सोचा की बनाऊ तस्वीर... लेकिन रेखाओ से नहीं शब्दो से तस्वीर अटपटा लग रहा सुनने मे...!!
काफी दिनों बाद आज फिर कलम में रिफिल भरा दी...और टेस्ट चेक खातिर दुकान पर ही उतार दिया चंद अल्फाज...दुकानदार बाबू कह रहे थे राहुल ठण्ड गयी अब ऐश करो...हमने भी मुंडी हिला दिया...और छाप दिया कुछ पल दिमाग इतर बितर कर रहे थे...!!!!
जन्मदिन था चाँद का...सब आये थे...पर फिर भी मुह फुलाए खड़ा था...चाँद ऐसा क्यूँ...!!
गोरखपुर में बारिश हो रही सोचा बड़ी रोज से कलम शांत हैं आज उसे भी मौका दूँ वरना नाराज हो जाएगा ... अगर सोचिये आँख मिचौली हो रही हो आकाश में इस समय तो क्या मंजर हो आहा सोच के मजा आ जाता...!!!
अर्शे से ना देखा वो भी एक बार झांक आया...कि चाँद फलक पर लटका हैं या नहीं...सही हैं एक प्यास के मारे उचक उचक के देखते ही रहे आज !!!
वक्त के चौके पर निशा .... कैसे बेल रही रोटी ... !!!!!
अभी खाना खाने बैठा था की लाइट चली गई जो की उत्तर प्रदेश की आम बात हैं .. अब शायद इस धुधिया रौशनी में मैं खा कम और सोच ज्यादा रहा था...कुछ अजीब किसे लिखने पर शायद कुछ रचना का निर्माण हो जाए ... तो बात दे आखिर सोचा क्या हमने ...!!!