बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"
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गुरुवार, 28 मार्च 2013

भँवरे...!!


भँवरे झांक रहे
दरीचों से...!!
कुंडी मार के
जा रही बसंत...!!

फूल बिखरे
जमीन से लिपटे...!!
माली भी
पोछ रहा आँसू...!!

कितने दिनो
का वास्ता था...!!
कितने दिनो
मे गुजर गया...!!

कौन जाने
कैसे समझाये...!!
रंगो की बातें
जमती थी कभी...!!

बदरंग वादियाँ हैं
वो क्या बतलाए...!!

~खामोशियाँ©

मंगलवार, 28 अगस्त 2012

बसंत और पतझड़


तेरे रास्तो में बिछे फूल...
अब सूख चुके हैं...!!!

वो बसंत के अरमान...
भी देख रूठ चुके हैं...!!!

आ गयी ऋतू टूटने की...
पतझड़ पंख पसार चुके हैं...!!!

रूठा हैं जुगनू मना ले...
बयार ने सम्मे बुझा रखे हैं...!!!

ठण्ड बहुत पड़ती यहाँ...
तभी सूखे पत्तो बटोर रखे हैं...!!!