बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"
निशा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
निशा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 19 मार्च 2013

बादलों की एक्स-रे...!!!


झील मे झांक
कर...
मांघे सुलझा रहा...!!

बादलों की एक्स-रे
पर...
कैसे उतार रहा...!!

दिन तपती दुपहरी
से...
चेहरा बिगाड़ रहा...!!

गोरे होने खातिर
कितने...
क्रीम लगा रहा...!!!

निशा की सूरमा
चुराये...
आंखे पोत रहा...!!!

~खामोशियाँ©

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

यादों के रुमाल..???


गोरखपुर में बारिश हो रही सोचा बड़ी रोज से कलम शांत हैं आज उसे भी मौका दूँ वरना नाराज हो जाएगा ... अगर सोचिये आँख मिचौली हो रही हो आकाश में इस समय तो क्या मंजर हो आहा सोच के मजा आ जाता...!!!

अभी निशा अपने शबाब पर थी कि
लग गई नजर कुछ लफंगे अब्रों की..!!

गरज रहे उसके अगल बगल जैसे..
बड़ी देर से सहमी सी बैठ हैं डर के..!!

सितारा भी गिनती गिन रहा आँख मूंदे..
बादलों के साए में छुपा बैठा चाँद...!!

जरा देख हट गयी तेरे ऊपर से कवर
अब जा टिप मार दे वरना हार जाएगा..!!

लो रोने लगा चाँद हार के अब तो..
रोएंगे बादल भी उसे देख कर..!!

अब कौन ले आये यादों के रुमाल...???

बुधवार, 9 जनवरी 2013

रात हो गयी..!!!


लो चढ़ गयी निशा तम पर...

और आधी रात हो गयी..!!
लोग होंगे अपने आधे सपनो में
तभी सारी बात हो गयी..!!

गवाह नहीं ढूंढ पाया मैं..
जब यह वारदात हो गयी..!!
सुनी हैं हमारी चीखे टपकती बूंदों ने..
बस जुबान ख़ामोश हो गयी...!!


शायद आधी रात हो गयी...गिना हैं समय का आइना इन टिक टिक ने

लगता खराब समय था वो ए राहुल ..
जब तेरे साथ ये वारदात हो गयी ..!!
बुझ गए सहरों के जलते सम्मे..
परवानो के राखो की बरसात हो गयी...!!

शायद आधी रात हो गयी...लाख बातें सीने से लगाए बैठी ये 9 की रात

कुछ पूछो तो बताये की..
उस से ठिठुरती ठंडक में क्या बात हो गयी..!!
बस इतना दिख रहा था झरोखे से..
चाँद की भी नौकरी समाप्त हो गयी..!!
चढ़ गयी चादर फलक पर 
और काली रात हो गयी...!!!

शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

सुबह की चुस्की...!!!

आज काफी दिन बाद भोर में ही नींद खुल गयी अब क्या था महसूस होते गया हर वो आलम जो प्रकृति मजे ले रही थी और उठा लाया अपनी कलम दवात साजाने को हर वो मंजर जो सुबह की चुस्की ले रहा...!!!
आज सुबह भी सर्द अंगडाईयाँ लेती
दुबुक गयी अब्र की रजाईयों में..!!!

सूरज भी उठा देर से थामे
रंगबिरंगे मंजन सजाये ब्रश पर....!!!

बयार आ गयी सुबह थामे बर्फीले अक्स
जैसे लिए हो सुबह की अलार्म घडी...!!!

रात को देर हो गयी थी सोने में
देख तभी निशा जाने का नाम न ले रही..!!!

बुधवार, 17 अक्टूबर 2012

सूरज का जन्मदिवस .. !!!

सबके जनम दिवस पर बधाइयां लिखते लिखते यूँ ही सोचने लगा की अगर सूरज जन्मदिन मनाये तो उसमे आखिर क्या...कमी रह जाएगी...उसे बता नहीं सकता बस लिख सकता हूँ भावनाओं की आवा पोह को जेहन में से ... !!! 

हवाओं ने फुक मारा के फूल गया गुब्बारा..
बाँध दिया उसके सिरे को पहाड़ों के टीलों से ..!!

बड़े ख़ुशी से उड़ते अब्र उसकी मांघ झाड रहे ..
पक्षी भी चल दिए लोगों को न्योता बाटने ..
चमकती बिजली लिए तैयार बर्फ का केक काटने को .. !!

कोई अकेले बैठा था मुरझाये एक कोने में ..
पर मना न सकता कोई उसको आने खातिर .. !!

उसके आते पिन लग जाएगी गुब्बारे में ...
निशा ओह्ह निशा मुमकिन नहीं बुलाना .. !!

रविवार, 14 अक्टूबर 2012

ट्रेन की यात्रा...!!!




सूरज छतरी ताने चल रहा बगल में ,
एक तूफान पर औंधे मुह लिपटी ट्रेन ..
हर मंजर हर जगह पीछे छूट रहे.. !!

बस साथ चल रही वही तन्हाई के अब्र..
कितने अन्शको के सैलाब अपने जिगर में लपेटे ..
टपका रहे हमे ओस की बूंदों में घोलकर .. !!

हौले हौले एक खून से लतपथ लाल साँझ भी ...
डूब रही हैं धीरे धीरे .. !!

और रात भी खामोसी से आ गयी ओढ़ ढाँप के..
कोई शायर खोज रहा धुधिया रौशनी ..
कोई बता दे उसे कि आज अमावस हैं .. !!

वरना खामखा आंखे बिछा कर रखेगा...
पुरानी खटोले पर सोये टकटकी लगाए .. !!

सोमवार, 8 अक्टूबर 2012

रात की थाल


अभी खाना खाने बैठा था की लाइट चली गई जो की उत्तर प्रदेश की आम बात हैं .. अब शायद इस धुधिया रौशनी में मैं खा कम और सोच ज्यादा रहा था...कुछ अजीब किसे लिखने पर शायद कुछ रचना का निर्माण हो जाए ... तो बात दे आखिर सोचा क्या हमने ...!!!
वक्त के चौके पर निशा .... कैसे बेल रही रोटी ... !!!!!
फुलाने को दबाये की धुधिया रौशनी थामे...
चमक गयी काली तवे पर .... !!!
बादलों में गुम होती जाती जैसे ...
एक नन्हा बच्चा
रात और दिन ...दिन और रात खेल रहा हो ... !!!
थाल भी सज गयी हो ... !!!
पर अचानक देखो ...उलट गयी थाली ....
चावल के दानो तरह सितारे छींटा गए पूरे फलक पर ... !!!