बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 31 मार्च 2013

बूढ़ा पीपल


उस बूढ़े पीपल के
नीचे...
आज भी लेटी मेरी
आस...!!

तलाश रही पथिको मे
देख...
आज भी उसकी जैसी
लिवास...!!

मिलेगी कभी न कभी
वो...
उसे शायद हैं ये
विश्वास...!!

तभी मचल जाती वो
भी...
देख परछाइयों को
अनायास... !!

~खामोशियाँ©

पता पूछती जिंदगी



जिंदगी मजिल का पता
पूछते बीत गयी...!!!

हर सुबह रोज निकलती
घर से ओढ ढांप के,
चौराहे पहुचते किसी
पनवडिये को देख गयी...!!!

चार तनहाइयों बाद
एक हलकी सी तबस्सुम,
ऐसी ही आवाज
मेरे कान को गूंज गयी...!!!

हमने भी देख लिया
खांचो में बसे अपने दर्द को,
बस एक बयार पुर्जा थामे
कई आसियाने लांघ गयी...!!!

इस बीच क्या हुआ
किसको बतालाये आलम,
जल्दी-जल्दी में देख
बिना चाय पीये निकल गयी...!!!

लौटकर हमने मेज पर
देखा तो पाया,
जाते जाते वो अपनी
यादें ही भूल गयी...!!!

हिम्मत नहीं कि 
उड़ेल दे पिटारे उसके,
यूँ साँसे चौपत के 
उसे बक्से में तह गयी...!!!

~खामोशियाँ©

जिंदगी:एक भंवर....लेख...!!!



कभी कभी हम अपने अनुभवों के संसार में केवल एक अकेले नाविक भाति हवाओं से लड़ते रहते हैं...उस भ्रम रुपी संसार के क्रिया कलापों के रचनाकार हम स्वंय ही होते हैं...!!!

हम लाख मन्नते कर ले किसी अन्य को अपने उस संसार की ऊष्मा में जलाने में पर हम उन्हें
 उससे परिचित नहीं करा सकते....उसके दुःख, पीड़ा, ख़ुशी, भावनाएं केवल अपने दायरे तक ही नियत रहती हैं ...हमारे अपने लिए होती हैं वो अजब दुनिया... दूसरों के लिए वह एक विचित्र अलग संसार जैसा हैं...वह उसके बारे में जान सकता है, पढ़ सकता है, सुन सकता है... परन्तु उसे महसूस कतई नहीं कर सकता...!!

ठीक ये बात उसी तरह होती जैसे हम छोटे थे ... हमारे बाबूजी बताते थे की हम लाखो मंदाकिनियों में विलीन हैं और उनमे से सिर्फ एक मन्दाकिनी में हम रहते .... और सूरज चाँद धरती आकाश आग पानी...सब सब इस परिवेश तलक ही हैं..दूसरी दुनिया में कुछ भी नहीं ...सिर्फ धुंध से धुधली तस्वीरे हैं ...जो दिखती नहीं इन नाजुक आँखों से..!!!

आज पता चला शायद वो सही थे...!!

~खामोशियाँ©

शुक्रवार, 29 मार्च 2013

खिड़कियाँ या सरहद...!!!


दीवाल पर सजी पोट्रेट...
बगल मँडराते झूमर...!!
एक ही कमरे मे कैद...
कितनी जीवंत वस्तुए...!!

कुर्सियाँ भी बिठाने को...
आतुर रहती अपने पे...!!
शायद हफ्तों मे भी...
कईयों की बारी ना आती...!!

पुरानी अल्मारियों मे
पैर जमाये बूढ़े धरौंदे...!!
चांदी की काटी पर झूलती...
काका की बनाई ऑयल पेंटिंग...!!

दोनों ओर खिड़कियाँ...
बिलकुल आमने सामने..!!
मानो मुह चिढ़ा रही...
देख एक दूसरे को...!!

पर ऐसा नहीं शायद...
क्या गज़ब तालमेल हैं...!!
एक की सवाल पर तुरंत
दुजी उत्तर थमाती...!!

कोई एक से देखता...
चलते फिरते मँडराते लोग...!!
तो दूसरी वीरानियों से...
मुखातिब करवा देती...!!

जैसे कमरा ना हो...
हो सरहद की लकीर...!!
दोनों ओर दो समुदाय...
और दोनों से बराबर प्रेम...!!

कई वर्षो की आहुती दी...
अब लोग कहते हटाओ..!!
तोड़ रहे लोग मेरा घर....
मिट रहा हैं मेरा वजूद...!!

हाँ लकीरें ही तो हैं...
पर अब मिट नहीं सकती...!!
पुरानी हो चुकी हैं...
मिटाने पर और गाढ़ी होंगी...!!

~खामोशियाँ©

आइस-ट्रे...!!!


अभी निकाल लाया...
आइस-ट्रे....
कितने जुडवे बच्चे...
हमशक्ल...!!

पहचान कर पाना
मुश्किल...
हाथ पाँव बटोरे बैठे
सभी...!!

जाने कौन सा दर्द
पाले...
चिलम फूँक रहे
देख...!!!

चंद लम्हो की
जिंदगी...
कल फिर जनमेंगे
दुबारा...!!!

नयी आइस-ट्रे की कोख
मे...
फिर कौन याद रखेगा
तुझे...!!

~खामोशियाँ©

गुरुवार, 28 मार्च 2013

भँवरे...!!


भँवरे झांक रहे
दरीचों से...!!
कुंडी मार के
जा रही बसंत...!!

फूल बिखरे
जमीन से लिपटे...!!
माली भी
पोछ रहा आँसू...!!

कितने दिनो
का वास्ता था...!!
कितने दिनो
मे गुजर गया...!!

कौन जाने
कैसे समझाये...!!
रंगो की बातें
जमती थी कभी...!!

बदरंग वादियाँ हैं
वो क्या बतलाए...!!

~खामोशियाँ©

बुधवार, 27 मार्च 2013

सपनों की होली...!!


पानी नहीं तो
होली कैसी...!!

रंगो मे हो
सफेदी जैसी...!!

शाम को
छलकेंगे आँसू...!!

और बहकेंगे...
वो भी हरसू...!!

महफिल ना होगी...
लोग न होंगे...!!

फिर भी जमेगी
सपनों की होली...!!

~खामोशियाँ©

सोमवार, 25 मार्च 2013

ईमानदारी का कुर्ता...!!


कितने वादो
का ख्याल किया...
वक़्त मोह का
चश्मा निकाल दिया...!!

आसरा पाला
टूटा फूटा सा...
लोगो ने उससे
भी सवाल किया...!!

ईमानदारी का
कुर्ता पड़ा खूटी पे...
बेईमानो ने उसका
क्या हाल किया...!!

जो नहीं पास
वो ताउम्र आया नहीं...
जो था उसका...
भी जीना मुहाल किया...!!

~खामोशियाँ©

शनिवार, 23 मार्च 2013

पुरानी केतली...!!!


टूटी छप्पर लांघती...
सुबह की तिरछी धूप...!!

मद्धिम आंच पर ...
फफक पड़ती चाय...!!

हाथ पैर जलाए बैठे...
प्लेट मे छितराए कचौड़े...!!

रंग बिरंगी चटनी...
उड़ेलती कलछुल...!!

धुँए पांव फैलाये...
देख कमरे भंठ गए...!!

उफ़्फ़...
कितनी बीड़ी फूँकती...
ये पुरानी केतली...!!

~खामोशियाँ©

बुधवार, 20 मार्च 2013

कविताओ के प्रेमियों के लिए अच्छी खबर हैं...!!


दस खामोसियाँ का संकलन....बस आपकी एक क्लिक दूर....!!!
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~खामोशियाँ©

मंगलवार, 19 मार्च 2013

बादलों की एक्स-रे...!!!


झील मे झांक
कर...
मांघे सुलझा रहा...!!

बादलों की एक्स-रे
पर...
कैसे उतार रहा...!!

दिन तपती दुपहरी
से...
चेहरा बिगाड़ रहा...!!

गोरे होने खातिर
कितने...
क्रीम लगा रहा...!!!

निशा की सूरमा
चुराये...
आंखे पोत रहा...!!!

~खामोशियाँ©

सोमवार, 18 मार्च 2013

फागुन क बदरा(भोजपुरी)


फागुन क बदरा..झूमत बा रे...!!
पासे बैठावे खातिर...क़हत बा रे...!!
उड़ाई के गुलाली जरा ए बाबू...
नजरिया मिलावे खातिर...क़हत बा रे...!!

झूमी झूमी खेतिया मे...रंग छितराये...
लाली लाली गलिया मे...बसत बा रे...!!
गोरी गोरी मूहवा पे...चढ़त रंगवा...
बरवा लटियावे खातिर...पुछत बा रे...!!

~खामोशियाँ©

मीठा...

पक के गिरने वाला ही था...
कि क्षितिज जेब मे रख लिया...!!

अब सुबह ही निकालेगा उसे...
टाँगने को फ़लक पर दुबारा...!!

कोई उठ जाना जल्दी तो...
बताना कितना मीठा था वो...!!

~खामोशियाँ©

रविवार, 17 मार्च 2013

दिल

दिल भी
तो शायद कागजी ठहरा...

वक़्त आया
तो आवाज बना लिया...!!

बच्चा आया
तो जहाज बना लिया...!!

शहर आया
तो रिवाज बना लिया...!!

~खामोशियाँ©

शनिवार, 16 मार्च 2013

पुरानी खिड़कियाँ...!!


उचक के झांक रहे...
पुराने यादों के अक्स...!!
पर्दो पे पेंग मारते...
पतझड़ के गमगीन भौरे..!!

कितने अरमान अपने पर
लादे उतार उन्हे ज़रा...!!
कुछ चौड़े लंबे ठहरे...
गर्दन झुकाये घुस रहे...!!

अब बुला रहा तेरी
कोहनी छूने को बर्जा...!!
थोड़ा बेताब हैं वो...
रील घूमा के चलाने को...!!

देखेगा वो भी साथ बैठे...
रोने मत देना उसे...!!
वरना लोग सोचेंगे...
गर्मियों मे अबसार कैसे...!!

~खामोशियाँ©

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

मेला...!!!



साझ बन सँवर
के तैयार...
तारे भी सेंट लगाए
बाहर खड़े ...!!

अब्र ईस्त्री कर
रहा मठमैली कमीज...
मेला लगा
कुछ दूर फ़लक पे...!!

ओहह फटा था कुर्ता
अब्र का शायद...
अठन्नी गायब
कौन ले गया उसको...!!

बच्चे रो रहे
कोई मनाओ उन्हे...
सुबह होने से पहले
वरना कल ना आएंगे...!!

~खामोशियाँ©

बुधवार, 13 मार्च 2013

ख्वाब...!!!



ख्वाब परिंदा ठहरा...
बड़ी आराम से...!!!
उड़ रहा ख्वाइशों के
नीले बैक्ग्राउण्ड मे...!!!

अचानक टकरा गया...
टूट गए पर उसके...!!!
छन्न से बिखर गयी...
मानो सारी कायनात...!!

ओह रूई के गोले...
रंगीन बनते जा रहे...!!!
सूरज पीला मरहम लिए
चाँद ढूढ़िया टॉर्च थामे...!!!

सभी आए हॉस्पिटल मे...
पर कमी हैं किसी की...!!!
मुकद्दर की गाड़ी पंचर हैं...
उसे कोई बुला लाओ...!!!

मंगलवार, 12 मार्च 2013

मालपूवा...!!!



रात नीली चासनी
उबाल रही ... !!!

झील के कड़ाहे मे
पूनम के चाँद ने
मुँह लभेड रखा ... !!!

अब मिठास
लिए घूम रहा...!!!

चखाने सबको
मालपुए का जायका...!!!

एक शक्स खोंखले
बांस से निहार रहा...!!!

बस चकोर होगा...
जा ले के आ
मुँह मीठा करा दे...!!

सोमवार, 11 मार्च 2013

रात...!!!


आज आसमान की ओर देख रहा था तो कुछ सोचा की बनाऊ तस्वीर... लेकिन रेखाओ से नहीं शब्दो से तस्वीर अटपटा लग रहा सुनने मे...!!

दूर खड़े सितारे पास बुला ले...
रात हो चली चिराग जला ले...!!!

एक उदास पुर्जा छू रहा दामन...
अंधेरा हैं घना अंदर सुला ले...!!!

झील नहाने गई बड़ी दूर लगता...
रूठी हुई चाँदनी तू मना ले...!!!

आसमान बड़ा रो रहा इनके बगैर...
वो काला कोट भी यही बिछा ले...!!

शनिवार, 9 मार्च 2013

खून के धब्बे ...


एक पुरानी...
जंग ओढ़े आरी...
काट रही सूरज की...
उँगलियों के नासूर..!!

नजरे छटकते ही...
और खिच गयी...!!

अब सरक रहे
लाल पानी को
थामने से क्या होगा...!!

खून के दब्बे...
बराबर मौजूद हैं
सूरज की बुशट पे...!!

साईरन बजने पहले
ही फींच देना उसे...!!

शुक्रवार, 8 मार्च 2013

पार्टी


फ़लक पर
औधे लटके हैं
झिलमिलाते झालर...!!

एक तगड़ा
हलोजेन बल्ब भी
झूल रहा...!!

शाम तक खाने
का बुलावा आएगा
पार्टी हैं लगता...!!

हाइकू


हाइकू क्या है ?
हाइकू यूं तो जापानी काव्य बिधा है ,किन्तु हिन्दी साहित्य ने भी इसे अपना लिया है ,हाइकू काव्य मे 17 वर्ण होते हैं ,और ये तीन पंकितियों मे लिखा जाता है ,प्रथम पंक्ति मे 5 वर्ण दूसरी पंक्ति मे 7 वर्ण और तीसरी पंक्ति मे पुनः 5 वर्ण ...!!
दूरी ही बेहतर मंझो बीच...
चड़ गए गर एक के ऊपर दूसरे...
फिर काटेंगे खाएँगे कई उगलियाँ...!!!

बुधवार, 6 मार्च 2013

काढ़े रुमाल...


कितनों की खिदमत का ख्याल कर रखे हैं...
हम अपनी दराज मे काढ़े रूमाल रख रखे हैं...!!

सदियों से जमती जा रही टोटियों जैसे...
अपनी हाथो से खुद जीना मुहाल कर रखे हैं...!!

रात के आते निकाल जाते स्वान बाहर...
घर के रखवाले ही अब बवाल कर रखे हैं...!!!

सोती चाँदनी को जगाने खातिर देख...
झिंगुर भी अपनी आवाज़े निहाल कर रखे हैं...!!!

शनिवार, 2 मार्च 2013

ख्वाइश...


धूप के साये मे निशान कहाँ आते... 

टूटी शाख पे अब इंसान कहाँ आते...॥ 

ख्वाब अधूरे ना छूटते बशर के...
रातों को जगाने अब हैवान कहाँ आते...॥ 

जुबान छिल जाती गज़लों की महफ़िलों मे...
जुम्मे की दुपहरी पे अब अजान कहाँ आते...॥

दुवाओ के थूकदान सजाते दरवाजे पर...
इस सुनसान मे अब मेहमान कहाँ आते...॥

ख्वाइशों की कतार लगाए खड़े हम...
मीरा के शहर मे अब घनश्याम कहाँ आते...॥

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

रातों के मुसाफिर


रातों के मुसाफिर की बात जँचने लगी...
पतवार पे बल्ब की बालियाँ जलने लगी...॥

डूब जाएंगे पलट सभी खारे मे...
टूटे परों से कस्तियाँ लदने लगी...॥

लहरों ने घेर रखा था पूरी नाव...
तभी तो पागल जलपरियाँ ऊघने लगी...॥

कोई जला दे पीला टॉर्च पहाड़ तलक...
जुगनुओ की गर्मियाँ अब थमने लगी...॥