बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"
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रविवार, 26 मई 2013

रात


उफ़्फ़..
फ़लक ने तोड़ दी
चमचमाती बटन..!!

बस सितारे लटके हैं
औंधे झुलते
धागे पकड़े..
बयार रोक लो ए अब्र..!!

वरना गिर पड़ेंगे
ऊपर गर्म फ़ुहारे..!!

©खामोशियाँ

रविवार, 31 मार्च 2013

पता पूछती जिंदगी



जिंदगी मजिल का पता
पूछते बीत गयी...!!!

हर सुबह रोज निकलती
घर से ओढ ढांप के,
चौराहे पहुचते किसी
पनवडिये को देख गयी...!!!

चार तनहाइयों बाद
एक हलकी सी तबस्सुम,
ऐसी ही आवाज
मेरे कान को गूंज गयी...!!!

हमने भी देख लिया
खांचो में बसे अपने दर्द को,
बस एक बयार पुर्जा थामे
कई आसियाने लांघ गयी...!!!

इस बीच क्या हुआ
किसको बतालाये आलम,
जल्दी-जल्दी में देख
बिना चाय पीये निकल गयी...!!!

लौटकर हमने मेज पर
देखा तो पाया,
जाते जाते वो अपनी
यादें ही भूल गयी...!!!

हिम्मत नहीं कि 
उड़ेल दे पिटारे उसके,
यूँ साँसे चौपत के 
उसे बक्से में तह गयी...!!!

~खामोशियाँ©

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

कशिश...!!!

सूनी जिदगी बोझल होती....परछाई खोने का भी डर रहता...जाने और कितने डर रहते जेहन में कैद...कितनो को बतलाये...एक आकृति सजाने की कोशिश की हैं पकड़ लिए सूचित करियेगा...उसमे रंगों को भरवाना हैं...सूख गयी हैं उसे मुद्रक की स्याही...हमारे लिए तो अब केवल श्वेत श्याम तस्वीरे ही बनाता वो...कौन भरवाए उसकी "कार्ट्रिज में इंक"....!!!
एक एकांत सी जगह खोज रहा था मैं...
शायद सुनसान सा कब्र खोद रहा था मैं...!!!

कहने को काफी दलीले थी मन में..
चेहरे पर चादर ओढ़कर सो रहा था मैं...!!!

किसी कौतुहल से डरे हुए जीवन के...
ना जाने किसके पुराने बाँट जो रहा था मैं...!!!

किसी प्लेटफोर्म चीरकर धडधडाती रेल जैसे...
कितनो की जीवन में हल्ला बोल रहा था मैं...!!!

एक छत थी टपकती हुयी आशियाने में...
उससे अपनी दामन भीगो रहा था मैं...!!!

धुन भी थी मदमस्त हवाओं की आज...
फिर भी पंख उतार कर सो रहा था मैं...!!!

कितने काफिले आये गए यहाँ कौन बताये...
किसके पैरोंकी खनक को मसोश रहा था मैं...!!!

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

कांचे का खेल...!!!


बड़ी आँड़ी तिरछी रास्तों में...
बिछी हैं सकरी गलियाँ...!!!

हर मोड़ पर दस्तक देती...
अलसाई साँझों की बालियाँ...!!!

सूरज ऐंठकर बैठा दूर...
बयार पकड़ी हैं डालियाँ...!!!

कांचे के इस खेल में अक्सर...
बदल जाती हैं गोलियाँ...!!!

पकड़ भाग रहा सब मंजर...
जैसे ब्याहे जा रही डोलियाँ...!!!

बुधवार, 30 जनवरी 2013

अरमानो की महक...!!!


आज बड़ी दिन बाद बचते बचाते निकल आई धुप हमारे गलियारे में...और अजीब हरकत करने लगती हमारी कलम अचानक जैसे कोई छोटे बच्चे का हाथ पकड़ के कुछ लिखाना चाह रहा हो...!!

यादो के दरीचों से देखो आज
कैसे छन रही महीन किरने...!!

बयार भाग रही उरस के.
वादों से भरी अनसुलझी गुच्छी...!!

पक रहा कही डेऊढ़ी तक आ..
गयी किसीके अरमानो की महक...!!

आखों में चिपकाए ख्वाब आज..
ताप रहा चेहरा मधिम आंच पर...!!

जा पोछ ले लाल हो गया चेहरा फिर ..
पूछुंगा कितने अरमान ख़ाक किया...!!