भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
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मंगलवार, 19 मार्च 2013
मंगलवार, 12 मार्च 2013
सोमवार, 11 मार्च 2013
रात...!!!
आज आसमान की ओर देख रहा था तो कुछ सोचा की बनाऊ तस्वीर... लेकिन रेखाओ से नहीं शब्दो से तस्वीर अटपटा लग रहा सुनने मे...!!
दूर खड़े सितारे पास बुला ले...
रात हो चली चिराग जला ले...!!!
एक उदास पुर्जा छू रहा दामन...
अंधेरा हैं घना अंदर सुला ले...!!!
झील नहाने गई बड़ी दूर लगता...
रूठी हुई चाँदनी तू मना ले...!!!
आसमान बड़ा रो रहा इनके बगैर...
वो काला कोट भी यही बिछा ले...!!
मंगलवार, 20 नवंबर 2012
सोमवार, 24 सितंबर 2012
पूनम की रात...!!!
आज बैठा एक झील पर शाम हुए कुछ सोच रहा था...लोग अनर्गल कहते जिसे...पास था कुछ पर्चे के टुकड़े पर...एक पुरानी नीब की पेन से...छिडक छिड़क के लिखा हूँ...कुछ...!!!
इस अधेरे में भी वो....
सिसकियाँ मौजूद रहती हवाओं में...!!!
जो धुएं से लिपटे चाँद में नहाती...
हुई बह जाती हैं किसी झील में...!!!
आहट भी लहरों में...
धमनियों जैसी फडकती रहती...!!!
कोई आला थामे आये और...
नाप जाए उनको एक लिखावट में...!!!
उस पर जलकुंभी ओढ़े...
बैठी सुबह झाकती चाँद को...!!!
सिसकियाँ मौजूद रहती हवाओं में...!!!
जो धुएं से लिपटे चाँद में नहाती...
हुई बह जाती हैं किसी झील में...!!!
आहट भी लहरों में...
धमनियों जैसी फडकती रहती...!!!
कोई आला थामे आये और...
नाप जाए उनको एक लिखावट में...!!!
उस पर जलकुंभी ओढ़े...
बैठी सुबह झाकती चाँद को...!!!
अपने दर्द को बयान करने खातिर..
टकराकर लौटती बार बार...!!!
पर रोक रखती अपने जेहन में
दाबे जख्मों को ताकि निहार ले..
इस पूनम की रात को फिर आये न आये...!!!
टकराकर लौटती बार बार...!!!
पर रोक रखती अपने जेहन में
दाबे जख्मों को ताकि निहार ले..
इस पूनम की रात को फिर आये न आये...!!!
मंगलवार, 18 सितंबर 2012
प्यार का गुल...!!!
गुल सम्हाले रखे हैं बस इन्तेजार हैं उनका,
पलके बिछाए बैठे हैं बस ऐतबार हैं उनका...!!!
हर पल साख से टूटते पत्ते बिखरते धरा पर,
कि दर्द नहीं वो तो बस प्यार हैं उनका...!!!
एक अर्शे से सुनने को तरस गयी जो..
आज चौखट पर खनकता झंकार हैं उनका...!!!
बस यही जिद्द चिपक कर बैठ गयी सांझ,
कि झील में उतरा हुआ ये चाँद है उनका...!!!
हर ज़र्रे में फिसलती हैं प्यास रूह की,
बस आये तो सही कुवां पास हैं उनका...!!!
सोमवार, 27 अगस्त 2012
झील में नहाता चाँद
दिल भीगा नहीं कि अंगारे बरस गए...
ख्वाब जला नहीं कि खालिश झुलस गए...!!!
बड़ी दर्द थी बादल की ककाराहट में देख...
आंसू भी उसके दामन से सरक गए ...!!!
सूखा गया सब कैसे भी लोग संभल गए,
लूह चली इन वादियों के बौर झुलस गए...!!!
कुछ की छतरी निकली गयी इन आलमों में,
शायाद वे ही बच के कहीं बस गए...!!!
ना रहा उसकी गोद में थोडा भी पानी,
तभी यहाँ लोग कतरा कतरा को तरश गए...!!!
कब से खोज रही धरा तुझे ए चाँद..
पर तुम पहले ही किसी झील तलक उतर गए...!!!
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