बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

यादों की अंगीठी....

आँखें कोरी थी और कोई बसता गया..
बिछड़े ऐसे की मन मसोसता रहा..!!

फटे ख्वाब की लुगदिया भरी जेबों में..
कोई संजोता गया मैं बिखेरता रहा..!!

जो सबपे बोझ था कहीं छूट गया..
रात निकलती गयी दिन ढलता रहा..!!

कोई और असर था प्यार के साथ भी..
वादे गिनते रहे सफ़र कटता रहा..!!

अँधेरी रात में डाकू दिखे आते..
जुगनू सोये रहे घर लुटता रहा..!!

बचा ना कुछ जली यादों के सिवा..
अंगीठी तपती रही वक़्त सेंकता रहा..!!

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

सूरज की रजाई...!!!



जाने कबसे छुपा था अलाव जला के..
निकल आया आज देख बादल ओस बना के..!!

सो रहा हैं सूरज अभी तक रजाई में..
कोपले भी उदास हैं आखों पे आंसू सजा के..!!

रुमाल उठाये चलती हवाएं पोछने को..
पर थामे हैं अक्स जमी दर्द जला के..!!

बुधवार, 12 दिसंबर 2012

कोहरे की रजाई...!!!

कोहरे की रजाई में लिपटी...
सुबह भी आज कुछ अलसाई हैं...!!!

बड़ी देरी से सोकर उठा सूरज भी...
उसकी चमक अभी तक...
खिड़कियों के दरक्तों में मौजूद हैं...!!!

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

खिड़कियों से झांकती बयार....!!!


इन सर्दियों के मौसम में ट्रेनों में यात्रा करने का अनुभव की अलग होता...ट्रेन झूमते हुए चलती बचकानी हरकते करते...उसपे हलकी ठंडी बयार आ जाती जुल्फों को सहलाने...आहा कितना गजब का अनुभव होता अब क्या बताये ....!!!
बड़ी तेज़ी में भागते इन सर्द डिब्बो से,
देख कैसे लुका छीपी खेलती हैं बयार..!!

बता रखा हैं शीशों से ना मिलने को,
फिर भी टकरा कर जान दे रही हैं यार..!!

अब जाके कौन समझाए उन्हें कि,
ये खेल रात में नहीं खेलते हैं बार बार..!!