बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 16 दिसंबर 2017

इस्तेहार

प्रेम में इश्तेहार बन बैठे हैं हम,
भोर के अखबार बन बैठे है हम।

सब पढ़ते चाय की चुस्की लेकर,
हसरतों के औज़ार बन बैठे हैं हम।

कितनी सुर्खियां जलकर ख़ाक हुई,
सोच कर यलगार बन बैठे है हम।

बदल जाता मुसाफिर हर सफर में,
काठ के पतवार बन बैठे हैं हम।

- खामोशियाँ
(17-दिसंबर-2016)

शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

अरमान

यूँ राख हुआ था अरमान जलते ही,
कोई मिल गया था मुझे निकलते ही।

लोगों के पॉकेट की तलाशी लीजिये,
वो चाँद दिखा था मुझे साँझ ढलते ही।

दोनों हाथ सने थे लाल दस्तानों से,
ख्वाब दिखा था मुझे हाथ मलते ही।

ढूंढता गया कितने मुखौटे उतार कर,
उससे मिलना था जो मुझे चलते ही।

कितने नक्शे बदले तुझे खोजने में,
हर मोड़ खड़ा था रास्ते बदलते ही।

- मिश्रा राहुल (0९-दिसंबर-२०१७)

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

खुमारी

अकेली आँखों में ऐसी खुमारी दे दे,
कहीं धूप दिखे तो मुझे उधारी दे दे।

मर्ज गिनता रहता रोज कागजों में,
मन भर जाए मुझे ऐसी बीमारी दे दे।

तनहा दौड़ती सुस्त रातों में गलियां,
यार मिल जाए मुझे ऐसी सवारी दे दे।

थक गया मैं अल्फाजों की रद्दी जुटाते,
दर्द ले जाए मुझे ऐसी आलमारी दे दे।

(मिश्रा राहुल) (07-दिसंबर-2017)
(©खामोशियाँ-२०१७)(डायरी के पन्नो से)