भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
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शनिवार, 1 जून 2013
मंगलवार, 2 अप्रैल 2013
गमो का जन्मदिन...
एक खाली
पड़े मकान से
जाने कितनी बार बात हुई...
कई रात
दोनों साथ काटें
सिरहाने तक लगवाए साथ...
रात मे
दियासलाई मार के
कितने अँधेरों को भगाए साथ...
देख आगन
पर कैसे टॉर्च
मार दोनों की तलाशी ले रहा अब्र...
बयार भी
दरवाजे पर कुंडी
पकड़ झूलती नजर आ रही...
सम्मे चिपके
कान लगाए चाह
रहे सुनना हम लोगों की फूस-फूस...
अब खोल
भी दे देख दरीचों
तलक आ पहुचे जुगनू रोते रोते...
देख अब
कहा तू अकेला
सब तो हैं चल आज माना ही ले...
... गमो का जन्मदिन...
मंगलवार, 12 मार्च 2013
सोमवार, 11 मार्च 2013
रात...!!!
आज आसमान की ओर देख रहा था तो कुछ सोचा की बनाऊ तस्वीर... लेकिन रेखाओ से नहीं शब्दो से तस्वीर अटपटा लग रहा सुनने मे...!!
दूर खड़े सितारे पास बुला ले...
रात हो चली चिराग जला ले...!!!
एक उदास पुर्जा छू रहा दामन...
अंधेरा हैं घना अंदर सुला ले...!!!
झील नहाने गई बड़ी दूर लगता...
रूठी हुई चाँदनी तू मना ले...!!!
आसमान बड़ा रो रहा इनके बगैर...
वो काला कोट भी यही बिछा ले...!!
बुधवार, 6 मार्च 2013
काढ़े रुमाल...
कितनों की खिदमत का ख्याल कर रखे हैं...
हम अपनी दराज मे काढ़े रूमाल रख रखे हैं...!!
सदियों से जमती जा रही टोटियों जैसे...
अपनी हाथो से खुद जीना मुहाल कर रखे हैं...!!
रात के आते निकाल जाते स्वान बाहर...
घर के रखवाले ही अब बवाल कर रखे हैं...!!!
सोती चाँदनी को जगाने खातिर देख...
झिंगुर भी अपनी आवाज़े निहाल कर रखे हैं...!!!
शनिवार, 2 मार्च 2013
ख्वाइश...
धूप के साये मे निशान कहाँ आते...
टूटी शाख पे अब इंसान कहाँ आते...॥
ख्वाब अधूरे ना छूटते बशर के...
ख्वाब अधूरे ना छूटते बशर के...
रातों को जगाने अब हैवान कहाँ आते...॥
जुबान छिल जाती गज़लों की महफ़िलों मे...
जुबान छिल जाती गज़लों की महफ़िलों मे...
जुम्मे की दुपहरी पे अब अजान कहाँ आते...॥
दुवाओ के थूकदान सजाते दरवाजे पर...
दुवाओ के थूकदान सजाते दरवाजे पर...
इस सुनसान मे अब मेहमान कहाँ आते...॥
ख्वाइशों की कतार लगाए खड़े हम...
मीरा के शहर मे अब घनश्याम कहाँ आते...॥
शुक्रवार, 1 मार्च 2013
शनिवार, 23 फ़रवरी 2013
सोमवार, 28 जनवरी 2013
बुधवार, 9 जनवरी 2013
रात हो गयी..!!!
लो चढ़ गयी निशा तम पर...
और आधी रात हो गयी..!!
लोग होंगे अपने आधे सपनो में
लोग होंगे अपने आधे सपनो में
तभी सारी बात हो गयी..!!
गवाह नहीं ढूंढ पाया मैं..
गवाह नहीं ढूंढ पाया मैं..
जब यह वारदात हो गयी..!!
सुनी हैं हमारी चीखे टपकती बूंदों ने..
सुनी हैं हमारी चीखे टपकती बूंदों ने..
बस जुबान ख़ामोश हो गयी...!!
शायद आधी रात हो गयी...गिना हैं समय का आइना इन टिक टिक ने
लगता खराब समय था वो ए राहुल ..
जब तेरे साथ ये वारदात हो गयी ..!!
बुझ गए सहरों के जलते सम्मे..
बुझ गए सहरों के जलते सम्मे..
परवानो के राखो की बरसात हो गयी...!!
शायद आधी रात हो गयी...लाख बातें सीने से लगाए बैठी ये 9 की रात
कुछ पूछो तो बताये की..
शायद आधी रात हो गयी...लाख बातें सीने से लगाए बैठी ये 9 की रात
कुछ पूछो तो बताये की..
उस से ठिठुरती ठंडक में क्या बात हो गयी..!!
बस इतना दिख रहा था झरोखे से..
बस इतना दिख रहा था झरोखे से..
चाँद की भी नौकरी समाप्त हो गयी..!!
चढ़ गयी चादर फलक पर
और काली रात हो गयी...!!!
सोमवार, 1 अक्टूबर 2012
एक अजीब रात...!!!
आज यह रात भी आ गयी ... !!!
जैसे हो किसी घने बगीचे के...
पेडो कि ओट लिए छुपते छुपते...!!!
लगता हैं बादल की जेब से..
चाँद की चमकती अठन्नी चुराई हैं..!!!
वही फटी पुरानी काली शाल लपेटे...
चल पड़ी हैं मेले में गुम होने को...!!!
अब यह सन्नाटे इसकी...
आखों में धूल जैसे चुभ रहे...!!!
कोई बुला तो दे उन झीगुरों के..
टोलियों को कहा गायब हो गए...!!
सोमवार, 24 सितंबर 2012
पूनम की रात...!!!
आज बैठा एक झील पर शाम हुए कुछ सोच रहा था...लोग अनर्गल कहते जिसे...पास था कुछ पर्चे के टुकड़े पर...एक पुरानी नीब की पेन से...छिडक छिड़क के लिखा हूँ...कुछ...!!!
इस अधेरे में भी वो....
सिसकियाँ मौजूद रहती हवाओं में...!!!
जो धुएं से लिपटे चाँद में नहाती...
हुई बह जाती हैं किसी झील में...!!!
आहट भी लहरों में...
धमनियों जैसी फडकती रहती...!!!
कोई आला थामे आये और...
नाप जाए उनको एक लिखावट में...!!!
उस पर जलकुंभी ओढ़े...
बैठी सुबह झाकती चाँद को...!!!
सिसकियाँ मौजूद रहती हवाओं में...!!!
जो धुएं से लिपटे चाँद में नहाती...
हुई बह जाती हैं किसी झील में...!!!
आहट भी लहरों में...
धमनियों जैसी फडकती रहती...!!!
कोई आला थामे आये और...
नाप जाए उनको एक लिखावट में...!!!
उस पर जलकुंभी ओढ़े...
बैठी सुबह झाकती चाँद को...!!!
अपने दर्द को बयान करने खातिर..
टकराकर लौटती बार बार...!!!
पर रोक रखती अपने जेहन में
दाबे जख्मों को ताकि निहार ले..
इस पूनम की रात को फिर आये न आये...!!!
टकराकर लौटती बार बार...!!!
पर रोक रखती अपने जेहन में
दाबे जख्मों को ताकि निहार ले..
इस पूनम की रात को फिर आये न आये...!!!
गुरुवार, 20 सितंबर 2012
मंगलवार, 28 अगस्त 2012
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