आज यह रात भी आ गयी ... !!!
जैसे हो किसी घने बगीचे के...
पेडो कि ओट लिए छुपते छुपते...!!!
लगता हैं बादल की जेब से..
चाँद की चमकती अठन्नी चुराई हैं..!!!
वही फटी पुरानी काली शाल लपेटे...
चल पड़ी हैं मेले में गुम होने को...!!!
अब यह सन्नाटे इसकी...
आखों में धूल जैसे चुभ रहे...!!!
कोई बुला तो दे उन झीगुरों के..
टोलियों को कहा गायब हो गए...!!
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