आज जा पंहुचा पुराने एक पुस्तक मेले में बड़े कम चेहरे थे ... अवाक रह गया मैं यह देख कर ... इतनी दुर्गति हो चुकी हैं साहित्य कि ... कभी हलचल जमती थी इन्ही मेलो में ... अब क्या बताए कितना आगे पहुच चूका ये समाज कि पूरे लाइब्रेरी को एक फोल्डर में समेटे बैठा हैं .. हमारे मित्र विभव कुमार ने कहा कि ले राहुल क्या मैं यह पुस्तक उठा लूँ...मैं भी तपाक से कहा क्या लेगा यह तो मेरे पास एक कोने के फोल्डर में पड़ी हैं...जी हाँ "एक कोने के फोल्डर में..."....!!!
"एक कोने के फोल्डर में..."
बड़ी उदास नज़रों से ताकती
एक नीचे कि रैक में पड़ी....धुल भरी किताबें....!!!
जिनसे मुखातिब हुए देख...
जमाने हो चुके हैं...
शायद "एक कोने के फोल्डर में "
पड़ी उसकी सौत की वजह से...!!!
अक्सर जुम्मा इनकी
शोहरत में गुजरा करता था...!!!
किताबों में भी गुल साथ
तस्वीर छुपाये जाते थे...!!!
अब तो आ चुके चमकते स्क्रीन पर...
पन्ने पलटने जगह क्लिक करते...!!!
शायद इंसान की उंगलियां भूल गयी..
वो एहसास जो पन्ने उलटने में
जमती थी...शायद....हाँ...!!!
उस "एक कोने के फोल्डर में..."
क्या क्या रहता कौन जाने...!!!
अब तो आ चुके चमकते स्क्रीन पर...
पन्ने पलटने जगह क्लिक करते...!!!
शायद इंसान की उंगलियां भूल गयी..
वो एहसास जो पन्ने उलटने में
जमती थी...शायद....हाँ...!!!
उस "एक कोने के फोल्डर में..."
क्या क्या रहता कौन जाने...!!!
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