दुनिया जितनी ही आभासी प्रतिबिंब की तरफ अग्रसर हैं उससे तो यही प्रतीत होता की बहुत जल्द ही बच्चे A B C D और क ख ग घ सीधा इन्टरनेट के माध्यम से सीखेंगे...वाह क्या आलम होगा...बताता हूँ..लोगों के हाथो में मोबाइल या टैबलेट होगा...उंगलियां बटनों पर अचानक टपका करेंगे...लोग भूल जाएंगे अपनी लिखावट...शायाद उनके पास अपना जैसा कुछ ना होगा...याद करने खातिर कागज़ ना होगा...!!!
नन्ही उंगली जब कागज़ पकड़ती थी...
पेंसिल तरह सपने भी गढा करते...!!!
हर तरह की आडी तिरछी घुमाते..
नोक टूटे ही रोते गुस्साया भी करते...!!!
अजीब हैं यह कागज़ का टुकड़ा देख
जैसे अनजान लोगो से दोस्ती करते ...!!!
मार्कशीट हो या शादी का कार्ड..
उसी की सुगंध में डूब के नहाया करते...!!!
जाने कितने गुलों की खुसबू थामते...
उन्हें संजो के रोज आंसू सुखाया करते...!!!
पेंसिल तरह सपने भी गढा करते...!!!
हर तरह की आडी तिरछी घुमाते..
नोक टूटे ही रोते गुस्साया भी करते...!!!
अजीब हैं यह कागज़ का टुकड़ा देख
जैसे अनजान लोगो से दोस्ती करते ...!!!
मार्कशीट हो या शादी का कार्ड..
उसी की सुगंध में डूब के नहाया करते...!!!
जाने कितने गुलों की खुसबू थामते...
उन्हें संजो के रोज आंसू सुखाया करते...!!!
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