कभी था पर कभी उसे ना पता हैं,
छोटी छोटी बातों में क्यूँ मद खपाता हैं...!!
एक सांझ रोज आती घूँघट काढ़े,
क्यूँ ना तू उसे अपने लिए मनाता हैं..!!!
देख रोज चाँद भटक आता यहाँ पर,
क्यूँ ना तू उस रौशनी में नहाता हैं...!!!
जिंदगी तो ठहरी मजदूर जन्नुम की,
क्यूँ ना तू कटोरे में रोटी प्याज सजाता हैं...!!
बूढी इमली पीछे दुधिया टोर्च थामे रखता,
दिन ठीक हैं वरना यह चाँद भी लडखडाता हैं...!!!
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