यादो के दाग थामे दामन पुराने...
सुबह ही तो धोया था सर्फ़ से...!!!
जाने किनती मस्स्कत के बाद...
सुखाया टाँगे झूलते अरगनी पर...!!!
चिमटी भी लगाया कि उड़...
न जाए किसी दूसरे कि छत पर...!!!
इतनी सिलवटें हैं कि कितनी इस्त्री करे...
शायद कितना भी धोने पर नहीं जाते..
कुछ पुराने यादों के चकते...!!!
इतना आसान ही रहता भुलाना तो..
खुद बदल न लेता यादो से सनी कमीज...!!!
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