हर बार कभी अकेले बैठे नजर हर कोनों को अपनी ओर आकर्षित करती...!!!
या कहे किसी वातानुकूलित कैप्सूल में बैठे ढके हो कितने रंगीनियों से...!!!
पर दर्द से कराह रही नसों में कौन जान फूंके...!!!
आखें तड़प रही जिसके पूनम के चाँद की उसे कौन झील में परोसे...!!!
बस बयार को समझा दे कोई की उसके अक्स को तंग न करे...!!! —
या कहे किसी वातानुकूलित कैप्सूल में बैठे ढके हो कितने रंगीनियों से...!!!
पर दर्द से कराह रही नसों में कौन जान फूंके...!!!
आखें तड़प रही जिसके पूनम के चाँद की उसे कौन झील में परोसे...!!!
बस बयार को समझा दे कोई की उसके अक्स को तंग न करे...!!! —
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