उनकी दूरियों से भली तो नजदीकियां थी,
कितने बादलों से लिपटी उनकी बस्तियां थी...!!!
बस चले जा रहे यूँही कही घूमते हुए,
गर्दिशों से बड़ी तो जिल्लतों की कस्तियाँ थी...!!!
एक अजब सी बिजली को झेल रहा था,
यूँ निकलती आइनों से उभरी "आकृतियाँ" थी...!!!
जाने कितने लाशों को लादे चल रहा था मैं,
पहुंचा जब तालाब तलक तो देखा ए दोस्त,
गठरी में मरती तड़पती मछलियाँ थी...!!!
गठरी में मरती तड़पती मछलियाँ थी...!!!
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