बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

धूप का चीलम:


अगर हो सके तो वो आलम बता दो....
जी ना सकते जिसके वो बालम बता दो...!!!


सूरज छुप रहा किसी पहाड़ की ओट मे...
आस की ढेबरी से वो चीलम जला दो....!!!

शरद ऋतु देख आ गई पट्टी बांध के....
नयन की जर्फ से वो झेलम हटा दो....!!!

लफ्ज दर लफ्ज ही रिस्ते रहते दर्द....
आस रूठने से पहले वो रेलम हटा दो....!!!

©खामोशियाँ

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

चेहरा


चेहरे पर चेहरा सजाये बैठे हैं....
खुद मुखौटों मे उलझाए बैठे हैं....!!


चाँदनी कितनी चलती साथ...
ढेबरी पाकिटों मे छुपाए बैठे हैं...!!

आमवास अकेली पीछा करती...
जुगनू हाथो मे गढ़वाए बैठे हैं....!!

उम्मीद का साथ एक-दो कदम...
तकदीर खुद की बनवाए बैठे हैं...!!

©खामोशियाँ

रविवार, 22 सितंबर 2013

अजनबी मुखौटे


ट्रेन के पावदान भी गिनते
हर रोज़ सबके निशान...!!

चलते मचलते
हवाओं पर पेंग मारते...
हर हचको पर
अलार्म टाँगे
लोगो को जगाया करते...!!

कुछ धूधली तस्वीरों बाद
अक्सर दोहरा जाते चेहरे...!!!
मुखौटे भी गिने चुने
खुदा के पास भी...
तभी पहना देता
उन्हे एक अरसे बाद...!!

खोज ज़रा...
किसी अजनबी शहर मे
अजनबी बना के...
मिलेगा किसी
टूटी टीन की छप्पर तले
चाय की मीठे चुसकियाँ मारते...!!

पहचान ना पाएगा तू....
खुद के अक्स को भी....!!

©खामोशियाँ-२०१३

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

किस्मत का खेल


रात अब तनहा कहाँ
चाँद जागता ना साथ...
पत्ते खेलने बैठते कि
सुबह चली आती ढ़ूढ़ने।


बेगम लापता....
बादशाह रूश्वा...
किसे मनाए क्या सुलझाए।

किस्मत का खेल
उम्मीदों से कोसों दूर।

©खामोशियाँ

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

चाँद की बैकलाइट


चाँद की बैकलाइट मे
आज भी दिखते हैं....
तेरे प्रॉजेक्टर पर के उतरे हुए दिन....!!

स्वप्न मे भी कैकटस लगे पड़े....
हल्की सी अड़चन भी
पूरी तस्वीर बर्बाद कर देती....!!

©खामोशियाँ

बूढ़ी लालटेन का नटखट बच्चा...


शाम को
सूरज के जाते जाते...
एक सांस मे गटक जाता
पूरी तेल का मटका...!!

उसकी जीभ पर
उभरे हर एक
फफोले साफ गिने जा रहे...!!

इतने गम
खुद पर लादे
हर पहर मटकता ही रहता...!!
एक बूढ़ी लालटेन का नटखट बच्चा...!!


©खामोशियाँ

शनिवार, 7 सितंबर 2013

इतिहासी पन्ने


उस कायनात
की चमकती चाभी...
चांदी के छल्लो मे
उरसकर चली गयी....!!!
कितने
सैयारे लांघते पहुंचा...
पर दरवाज़ो को जकड़े
भूरी आँखों वाले ताले...
हर आहट पर
बड़ी आस से ताकते...!!
और उस रोज़ सोचता
एक रात
चुपके से क्यूँ ना फाड़ दूँ
तेरी जुदाई के
हर वो इतिहासी पन्ने...!!


©खामोशियाँ

सोमवार, 2 सितंबर 2013

बदलते लिबास....!!


लोग कहाँ बदलते रुवाब बदल जाते....
पुराने जैकेट मे पड़े रुमाल बदल जाते...!!

लिबास छुपाए फिरते आजकल ए बशर...
सफ़ेद कुर्ते लगे गुलाब बदल जाते....!!

बड़ी शिद्दत से सोते पुरानी यादों मे ...
आँखों से चिपके पड़े ख्वाब बदल जाते....!!

©खामोशियाँ

झील


कितने जाल फैलाया....
......तारो को पकड़ने खातिर....

पर झील अकेली ठहरी....
..........कोई उतरा तक नहीं....!!!

शायद एक ढूढ़िया बटन....
..........फंसा गया काटें मे.....

फ़लक का कुर्ता फटा था
..........और चाँद भी गायब.....!!!

©खामोशियाँ

डोरे डालता चाँद


एक जमाने से....
चाँद पीछे पड़ा मेरे.....
रात होते ही डोरे डालता....!!

कभी खिड़की से झाँकता....
तो कभी...
आगन पर टेक लगाए रहता....!!

आजकल
दिखता नहीं....
अमावस लिए गयी लगता....!!

महसूस
करता...ना चाहते
भी आँखें लिए जाता...!!

ऊपर फ़लक पर....
निशान हैं आज भी
चमकते उसके पाँव के....!!

©खामोशियाँ