बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 7 सितंबर 2013

इतिहासी पन्ने


उस कायनात
की चमकती चाभी...
चांदी के छल्लो मे
उरसकर चली गयी....!!!
कितने
सैयारे लांघते पहुंचा...
पर दरवाज़ो को जकड़े
भूरी आँखों वाले ताले...
हर आहट पर
बड़ी आस से ताकते...!!
और उस रोज़ सोचता
एक रात
चुपके से क्यूँ ना फाड़ दूँ
तेरी जुदाई के
हर वो इतिहासी पन्ने...!!


©खामोशियाँ

2 टिप्‍पणियां:

  1. इतिहास के पन्ने फाड़ देने से भी इतिहास में लिप्त यादें नहीं मिटा करती दोस्त...

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