अगर हो सके तो वो आलम बता दो....
जी ना सकते जिसके वो बालम बता दो...!!!
सूरज छुप रहा किसी पहाड़ की ओट मे...
आस की ढेबरी से वो चीलम जला दो....!!!
शरद ऋतु देख आ गई पट्टी बांध के....
नयन की जर्फ से वो झेलम हटा दो....!!!
लफ्ज दर लफ्ज ही रिस्ते रहते दर्द....
आस रूठने से पहले वो रेलम हटा दो....!!!
©खामोशियाँ
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