बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 9 मार्च 2018

अंजान

तलाश कर शागिर्द अपना तू अंजान थोड़े है,
अपने शहर में घूम रहा तू मेहमान थोड़े है।

आ जाएगी रोशनी अपना रास्ता बदल कर,
तेरे घर में बस एक ही रोशनदान थोड़े है।

कभी दिल से उछालो किस्मती पत्थर यारों,
हर छत पर बस एक ही आसमान थोड़े है।

खिलते नहीं हैं फूल पत्थर की तासीर पर,
ये किसी का आंगन है तेरा बागबान थोड़े है।

- मिश्रा राहुल | खामोशियाँ-2018
(डायरी के पन्नो से)(09/मार्च/2018)

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

टेपरिकॉर्डर

अपने पुराने
काठ के टेपरिकॉर्डर में
कैद करके रखी थी,
कुछ पुरानी
चुनिंदा नज़्में।

हर रोज
उसके सर पर,
टिप मारकर
जगाता था।

सुर
निकलती थी,
सामने सफेद
प्याली से टकराकर
गूजती थी बातें उसकी।

हर रोज नई नज़्म
अपनी छाप छोड़ती।
लेकर बैठता था
खाली प्याली अपनी।

हो जाती
कभी सौंधी सी,
तो कभी भीनी भीनी सी।
कुछ नज़्म
आँखे दिखाती,
तो कभी हो जाती तीखी सी।

अब
टेपरिकॉर्डर भी
रिवाइंड नहीं होता,
फंसता है उसका
पांव आजकल।

कुछ
नज़्म बोलता,
कुछ पर गला
फंसता उसका।

कैसेट से
उसकी बनती नही।
रील्स उलझकर
उसके गर्दन कसती हैं।

सोच रहा हूँ,
बेच दूं पर खरीदेगा कौन।
यादों से भरा इतने
वजन का टेपरिकॉर्डर।

- मिश्रा राहुल | खामोशियाँ
(03-मार्च-2018)(डायरी के पन्नो से)