भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013
बुधवार, 13 मार्च 2013
ख्वाब...!!!
ख्वाब परिंदा ठहरा...
बड़ी आराम से...!!!
उड़ रहा ख्वाइशों के
नीले बैक्ग्राउण्ड मे...!!!
अचानक टकरा गया...
टूट गए पर उसके...!!!
छन्न से बिखर गयी...
मानो सारी कायनात...!!
ओह रूई के गोले...
रंगीन बनते जा रहे...!!!
सूरज पीला मरहम लिए
चाँद ढूढ़िया टॉर्च थामे...!!!
सभी आए हॉस्पिटल मे...
पर कमी हैं किसी की...!!!
मुकद्दर की गाड़ी पंचर हैं...
उसे कोई बुला लाओ...!!!
शनिवार, 2 मार्च 2013
ख्वाइश...
धूप के साये मे निशान कहाँ आते...
टूटी शाख पे अब इंसान कहाँ आते...॥
ख्वाब अधूरे ना छूटते बशर के...
ख्वाब अधूरे ना छूटते बशर के...
रातों को जगाने अब हैवान कहाँ आते...॥
जुबान छिल जाती गज़लों की महफ़िलों मे...
जुबान छिल जाती गज़लों की महफ़िलों मे...
जुम्मे की दुपहरी पे अब अजान कहाँ आते...॥
दुवाओ के थूकदान सजाते दरवाजे पर...
दुवाओ के थूकदान सजाते दरवाजे पर...
इस सुनसान मे अब मेहमान कहाँ आते...॥
ख्वाइशों की कतार लगाए खड़े हम...
मीरा के शहर मे अब घनश्याम कहाँ आते...॥
शनिवार, 23 फ़रवरी 2013
बुधवार, 30 जनवरी 2013
अरमानो की महक...!!!
आज बड़ी दिन बाद बचते बचाते निकल आई धुप हमारे गलियारे में...और अजीब हरकत करने लगती हमारी कलम अचानक जैसे कोई छोटे बच्चे का हाथ पकड़ के कुछ लिखाना चाह रहा हो...!!
यादो के दरीचों से देखो आज
कैसे छन रही महीन किरने...!!
बयार भाग रही उरस के.
वादों से भरी अनसुलझी गुच्छी...!!
पक रहा कही डेऊढ़ी तक आ..
गयी किसीके अरमानो की महक...!!
आखों में चिपकाए ख्वाब आज..
ताप रहा चेहरा मधिम आंच पर...!!
जा पोछ ले लाल हो गया चेहरा फिर ..
पूछुंगा कितने अरमान ख़ाक किया...!!
रविवार, 13 जनवरी 2013
शनिवार, 5 जनवरी 2013
आकृतियाँ...!!!
देख रहा हैं कितने दर्द से उसे ..
धुधली आकृतियों में खोया हैं क्या ..!!
चेहरा भीगा हैं तेरा अभी तक ..
छुप के तू अभी अभी रोया हैं क्या ..!!
चेहरे पर ख्वाब साफ़ लदे उभर रहे ..
उठकर भी अभी तक सोया हैं क्या ..!!
निकल आये मुसीबतों के पौधे बगीचे में ..
फिर से तूने उधर कुछ बोया हैं क्या ..!!
मातमो में लखते तेरे यादों के दरीचे ..
पुरानी बस्ती ने आज कुछ खोया हैं क्या ..!!
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012
यादों की अंगीठी....
आँखें कोरी थी और कोई बसता गया..
बिछड़े ऐसे की मन मसोसता रहा..!!
फटे ख्वाब की लुगदिया भरी जेबों में..
कोई संजोता गया मैं बिखेरता रहा..!!
जो सबपे बोझ था कहीं छूट गया..
रात निकलती गयी दिन ढलता रहा..!!
कोई और असर था प्यार के साथ भी..
वादे गिनते रहे सफ़र कटता रहा..!!
अँधेरी रात में डाकू दिखे आते..
जुगनू सोये रहे घर लुटता रहा..!!
बचा ना कुछ जली यादों के सिवा..
अंगीठी तपती रही वक़्त सेंकता रहा..!!
बिछड़े ऐसे की मन मसोसता रहा..!!
फटे ख्वाब की लुगदिया भरी जेबों में..
कोई संजोता गया मैं बिखेरता रहा..!!
जो सबपे बोझ था कहीं छूट गया..
रात निकलती गयी दिन ढलता रहा..!!
कोई और असर था प्यार के साथ भी..
वादे गिनते रहे सफ़र कटता रहा..!!
अँधेरी रात में डाकू दिखे आते..
जुगनू सोये रहे घर लुटता रहा..!!
बचा ना कुछ जली यादों के सिवा..
अंगीठी तपती रही वक़्त सेंकता रहा..!!
गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012
कागज़ का बहिस्कार...!!!
दुनिया जितनी ही आभासी प्रतिबिंब की तरफ अग्रसर हैं उससे तो यही प्रतीत होता की बहुत जल्द ही बच्चे A B C D और क ख ग घ सीधा इन्टरनेट के माध्यम से सीखेंगे...वाह क्या आलम होगा...बताता हूँ..लोगों के हाथो में मोबाइल या टैबलेट होगा...उंगलियां बटनों पर अचानक टपका करेंगे...लोग भूल जाएंगे अपनी लिखावट...शायाद उनके पास अपना जैसा कुछ ना होगा...याद करने खातिर कागज़ ना होगा...!!!
नन्ही उंगली जब कागज़ पकड़ती थी...
पेंसिल तरह सपने भी गढा करते...!!!
हर तरह की आडी तिरछी घुमाते..
नोक टूटे ही रोते गुस्साया भी करते...!!!
अजीब हैं यह कागज़ का टुकड़ा देख
जैसे अनजान लोगो से दोस्ती करते ...!!!
मार्कशीट हो या शादी का कार्ड..
उसी की सुगंध में डूब के नहाया करते...!!!
जाने कितने गुलों की खुसबू थामते...
उन्हें संजो के रोज आंसू सुखाया करते...!!!
पेंसिल तरह सपने भी गढा करते...!!!
हर तरह की आडी तिरछी घुमाते..
नोक टूटे ही रोते गुस्साया भी करते...!!!
अजीब हैं यह कागज़ का टुकड़ा देख
जैसे अनजान लोगो से दोस्ती करते ...!!!
मार्कशीट हो या शादी का कार्ड..
उसी की सुगंध में डूब के नहाया करते...!!!
जाने कितने गुलों की खुसबू थामते...
उन्हें संजो के रोज आंसू सुखाया करते...!!!
रविवार, 14 अक्टूबर 2012
ट्रेन की यात्रा...!!!
सूरज छतरी ताने चल रहा बगल में ,
एक तूफान पर औंधे मुह लिपटी ट्रेन ..
हर मंजर हर जगह पीछे छूट रहे.. !!
बस साथ चल रही वही तन्हाई के अब्र..
कितने अन्शको के सैलाब अपने जिगर में लपेटे ..
टपका रहे हमे ओस की बूंदों में घोलकर .. !!
हौले हौले एक खून से लतपथ लाल साँझ भी ...
डूब रही हैं धीरे धीरे .. !!
और रात भी खामोसी से आ गयी ओढ़ ढाँप के..
कोई शायर खोज रहा धुधिया रौशनी ..
कोई बता दे उसे कि आज अमावस हैं .. !!
वरना खामखा आंखे बिछा कर रखेगा...
पुरानी खटोले पर सोये टकटकी लगाए .. !!
बुधवार, 3 अक्टूबर 2012
एक ही ख्वाब...!!!
नजरें बंद होते ही बस एक ही ख्वाब से मैं परेशान हो गया हूँ...जैसे किसी तकनिकी को समझाने लिए प्रमेय की आवश्यकता होती....शायद उसी तरह किसी भावनाओं को व्यक्त करने खातिर पुराने बुद्धिजीवियों ने कविताएँ का निर्माण किया...मैं इस कथन से कतई सहमत नहीं की "मुझे शायरी आती नहीं...मुझे कविताएँ में रूचि नहीं...इनमे रची न रखने वालों ने फिर असल मायनों में जिंदगी जी ही नहीं...चलिए ख्वाब से रु-बा-रु तो करा दु अपने...!!!एक ही ख्वाब...!!!
एक ही ख्वाब चला आता बेवक्त धूल मिट्टी से लिपटा हुआ...
शोर के मुरझाये गुल बालों में खोसे बहक के चलता हुआ...!!!
साँसे फूल रही उसकी आखों तक पहुँचते पहुँचते
भागता दौड़ता आखों में चिपका दीवारों से टकराता हुआ...!!!
दिखा यूँ की चली आई "आकृति" बलखाते हुए...
कमर में उरस कर चाबी की गुच्छी झनकाते हुए...!!!
एक खुशी अपनी बालों में लगा के घुमती देख...
पहुच गयी चेहरे तलक बालों का रस टपकाते हुए...!!!
रूठी तो लेट गयी फर्श पर मुह फुलाए...
तो कभी फर्श से मुझे गोद में बिठाती बहालाते फ़ुस्लाते हुए ...!!!
दिखा यूँ की चली आई "आकृति" बलखाते हुए...
कमर में उरस कर चाबी की गुच्छी झनकाते हुए...!!!
एक खुशी अपनी बालों में लगा के घुमती देख...
पहुच गयी चेहरे तलक बालों का रस टपकाते हुए...!!!
रूठी तो लेट गयी फर्श पर मुह फुलाए...
तो कभी फर्श से मुझे गोद में बिठाती बहालाते फ़ुस्लाते हुए ...!!!
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