बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

बुधवार, 30 जनवरी 2013

अरमानो की महक...!!!


आज बड़ी दिन बाद बचते बचाते निकल आई धुप हमारे गलियारे में...और अजीब हरकत करने लगती हमारी कलम अचानक जैसे कोई छोटे बच्चे का हाथ पकड़ के कुछ लिखाना चाह रहा हो...!!

यादो के दरीचों से देखो आज
कैसे छन रही महीन किरने...!!

बयार भाग रही उरस के.
वादों से भरी अनसुलझी गुच्छी...!!

पक रहा कही डेऊढ़ी तक आ..
गयी किसीके अरमानो की महक...!!

आखों में चिपकाए ख्वाब आज..
ताप रहा चेहरा मधिम आंच पर...!!

जा पोछ ले लाल हो गया चेहरा फिर ..
पूछुंगा कितने अरमान ख़ाक किया...!!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें