खुद ही भुला रखा अपनी सल्तनत का पता ..
उदासियों की बस्ती से कोई नागरिकता नहीं होती ..!!
चिराग तन्हाइयों का हो या फिर महफिलों का..
चिराग तन्हाइयों का हो या फिर महफिलों का..
उनकी कभी हवाओं से दोस्ती-यारी नहीं होती ..!!
यूँ टपकते छत तले रात ना कटती..
यूँ टपकते छत तले रात ना कटती..
गर तरबीयत इन शानदार हवेलियों में होती ..!!
बातों में हमारी सच्चाई के बोल थोड़े कम हैं
वरना आजकल खबरों में सब खैरियत न होती ..!!
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