कितनी इन्तेजार बाद हमने फिर कस्ती उठायी ..
उसे लेके उसे हमने भी एक घाट पर दे रखवाई ..!!
यादों की बाजुवों में गुजर गए काफी पल देख ..
ना वो ही आई ना उसकी प्यार या परछाई..!!
कुछ देर ठहर कर हमने भी कसती बढाई
अगल बगल देखा और पाया कोई नहीं था पुराना भाई..!!
लगा की नकाब चढ़ाया हैं सबने अपने पर
मैं गलत था शायद मैंने ही कसती गलत रखवाई..!!
वो था बड़ा समुन्दर और थी उसमे एक खाई..
हम उलझे थे यादों की भवर में किसी ने थी डोर कटवाई..!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें