मुसाफिर बने घुस गया पुरानी बस्ती में ..
अंश्कों को सैन्हारते पंहुचा मस्ती में ..!!
सुखाने बैठा जब भीगे रुमाल देख ..
यादें ही बैठी अलाव जलाए कस्ती में ..!!
फूँक मारा और जल उठे वादों के पुवरे ..
पर जल गया मैं फिर उन्ही परस्ती में ..!!
गलती थी कुछ तभी झेला हूँ अब तक ..
वरना कौन सजाता पैमाना इतनी सस्ती में ..!!
धो नहीं पा रहा था लिए ताउम्र उन्हें ..
तभी बंच आया ख्वाब उन्ही पुरानी बस्ती में ..!!
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