बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 6 जनवरी 2013

पुरानी बस्ती...!!!



मुसाफिर बने घुस गया पुरानी बस्ती में ..
अंश्कों को सैन्हारते पंहुचा मस्ती में ..!!

सुखाने बैठा जब भीगे रुमाल देख ..
यादें ही बैठी अलाव जलाए कस्ती में ..!!

फूँक मारा और जल उठे वादों के पुवरे ..
पर जल गया मैं फिर उन्ही परस्ती में  ..!!

गलती थी कुछ तभी झेला हूँ अब तक ..
वरना कौन सजाता पैमाना इतनी सस्ती में  ..!!

धो नहीं पा रहा था लिए ताउम्र उन्हें ..
तभी बंच आया ख्वाब उन्ही पुरानी बस्ती में ..!!

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