चलते चलते रुक गया एक मुकाम पर...खोज रहा हूँ कुछ पैरो की छाप पर...मिल नहीं रहे वे...मिटा दिया होगा हवायों ने सारे सबूत...अब उन गुनाहगारों खातिर सजा की अर्जी कहा तामिल कराऊ...किससे दरख्वास करूँ मेरी जिल्लतों भरी ज़िन्दगी को सवारने की...!!!
निशाँ खत्म हो गए अब..
यहाँ के बाद...!!!
चप्पल तो हैं मिट्टी सने
और तेरा अक्स भी हैं...
पर निशाँ गायब...!!!
ए आसमां तेरी खैर नहीं...
तूने ही निगला होगा...!!!
लौटा दे ला तुर्रंत...
वरना नोच लूँगा
तेरा चमकीला बटन...!!!
सांझ आने से पहले...
ही बिखर जाएंगे तेरे गौहर...!!!
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