बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"
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शनिवार, 5 जुलाई 2014

मेहनत और किस्मत



 रात से जबर्दस्त बारिश से पूरी गाड़ी मे बाढ़ आई थी। आज मैं लखनऊ से सुबह कृषक एक्सप्रेस से वापस गोरखपुर आ रहा था। लोग स्टेशन पर उतारने को बड़े आतुर थे, पर बारिश की वजह से कोई ये जहमत उठा नहीं पा रहा था। पर ट्रेन खुलने का समय हो आया लोग किसी तरह उतरे।

स्टेशन की फ़र्स्ट क्लास गेट से जैसे ही मैंने बाहर कदम रखा तो देख एक निहायत ही गरीब ऑटो वाला। गोरखनाथ, बरगदवा गोरखनाथ, बरगदवा चिल्ला रहा था। उसे कुछ नहीं दिख रहा था ना बारिश, ना अगल-बगल के पकौड़े-समोसे कुछ भी नहीं। उसे तो बस 12 लोग चाहिए थे ताकि उन्हे पहुंचा कर वो एक नई सुबह की ओर कदम बढ़ाए।

मैं और एक महोदया ऑटो मे पहुंचे काफी देर तक हम ऑटो मे से ही देख रहे थे। वो लगातार अपनी सवारी की जुगत मे बड़ी तेज़ बारिश मे लगातार भीग रहा था। पंद्रह मिनट बीते बीस मिनट बीते कुछ कुछ लोग करके आखिर टेम्पो फुल्ल हो गया। उसके चेहरे पर मानो चमक आ गयी थी। 

हमने उससे ये बात कही, "का हो भैया!! एतना तेज़ पानी मे तू भीगत बाड़ा अगर बीमार पड़ गैला त का होई"
ऑटो वाले का चेहरा मानो मुझे देखता ही रह गया। उसे लगा इस समाज मे उसका हाल खबर तो कभी ईश्वर भी नहीं लेते आखिर ये कौन है। 

आज वो सारी बातें मुझे बताने को तैयार था। उसने चाभी लगा दी ऑटो जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी, वैसे वैसे वो अपनी पोटली मे रखे सारे गम मुझे सुनकर उसे खाली करने की जुगत मे था।
उसने बोला बबुआ, "हमार एक गो लइकिनी!! बाबा क अस्पताल मे भर्ती बा अगर हम साँझ तक ओहके खातिर 500-600 क जुगत नाही कर पाइब त दवाई क खर्चा कैसे चली??"

अभी वो कुछ आगे बोल पाता कि उसका टेम्पो का पिछला चक्का ज़ोर की आवाज़ कर फट गया।
आज उसकी किस्मत मे पैसा कमाना था ही नहीं। पर मेहनत तो उसने भरपूर की। सारी सवारी सामने की एक ऑटो, जो लगता था भगवान की खुद की बनाई भेजी दी उसमे बैठ गयी। किस्मत से उसके पास सारी सवारी आ गई। 

मैंने कहाँ की क्या मैं आपके साथ चलूँ मदद कर दूँ??
पर उन्होने कहा!! अरे बाबू तू जा हमारे साथ ई हमेशा हौएला। 

मैं समझ नहीं पा रहा था। उन्हे पैसा दूँ 100-200 की ना दूँ। दूँ तो कहीं बुरा ना मान जाए और ना दूँ तो मेरे मन ना माने। फिर सामने शनि देव की मंदिर के पास कुछ देर खड़ा रहा। जाने क्या-क्या अनाब-सनाब बोला था मैं ऊपर वाले को।

आखिर मेहनती को हर बार किस्मती से पीछे क्यूँ कर देते हो???

- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)


रविवार, 29 जून 2014

किक-गुड मॉर्निंग गोरखपुर



गुड मॉर्निंग गोरखपुर - राहुल के साथ

किक एक छोटा सा शब्द पर शब्द पर समेटे है जाने कितने मतलब.....!!!

आज मैं राहुल फिर हाजिर हूँ लेकर अपना पुराना कार्यक्रम "गुड मॉर्निंग गोरखपुर"

फूटबाल विश्वकप का बुखार अभी उतरा नहीं है कि ISI मार्क कि नरेंद्र मोदी सरकार ने रेल-यात्रियों को लगा दी है एक किक। वो भी ऐसी किक की गोलकीपर यात्री चार दिन से बेहोश है।

उधर सल्लू मियाँ की किक भी आज के सारे सेल्फ-स्टार्ट फिल्मों पर अकेले ही भारी पड़ रही। मुझे डर है कहीं वो अगली बार से अपनी फिल्मों के ट्रेलर पर भी टिकिट लगाने ना शुरू कर दें।

किक शब्द का ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी से मतलब निकाला जाए तो हकीकत से कोसो ही बैठता। किक शब्द का ज़िंदगी मे भी गहरा महत्व है जिसने कायदे से किक करना नहीं सीखा उसकी ज़िंदगी ही गोल हो गयी।

बच्चा पैदा होते ही पहली हरकत किक से करता। नेता लोग वादों की पोटली परिणाम के तुरंत बाद गंगा मे किक कर आते। नाम शोहरत लेने के बाद प्रीति जिंटा ने भी नेस को किक कर दिया। यूपी सरकार ने लैपटाप योजना बंद कर सैकणों फिल्मी कीड़ो को बड़ी बेरहमी से किक कर दिया।

इतने सारे किक एक्सपेर्ट होने के बावजूद जाने क्यूँ हमारा देश फूटबाल मे पीछे है। उसका एक कारण ये भी है कि बिना सुनियोजन और दिशाहीन किक कभी-कभी फूटबाल कि दिशा मोड़कर खुद के ही गोल मे चली जाती।

सोचिएगा ज़रा!!! किक या सेल्फ़स्टार्ट???

आप मोटरसाइकल कैसे स्टार्ट करते तब तक मैं राहुल मिश्रा आज्ञा लेता हूँ

गुड बाय!! हॅप्पी किक !!

अँड हॅप्पी वीकेंड!!!

- A Program by Maestro Productions

शनिवार, 21 जून 2014

आईआईटी बनाम आम-अमरूद क्षेत्र:


आजकल पेपर से लेकर टीवी वाले सब के सब आईआईटी, आईएएस की राग अलाप रहे।
चाहे वो गौरव अग्रवाल आईएएस टोपर हो या सार्थक अग्रवाल सीबीएसई टोपर।
अब ये मील के पत्थर बन गए।

हर घर मे इनके ही चर्चे। हर इलाके मे इनके ही गुणगान एक तू है एक फ़लनवा अग्रवाल।
बच्चा पैदा होता नहीं की उसको मिल जाता काम। हमारे दो बेटे है एक जो पाँच महीने का है वो डोक्टर बनेगा, बड़े वाले को सोच रहा इंजीनियर बना दूँ।

बेटा बड़ा हुआ पाँच साल का उसको डाल दिया कान्वेंट मे। अंग्रेजी माध्यम मे। वो भी इसलिए नहीं कि उन्हे अपने लाडले को बड़ी अच्छा शिक्षा देनी, ये तो बस इसलिए कि बगल वाले मल्होत्रा जी का लड़का शहर के नामी स्कूल मे पढ़ता। तो सोसाइटी मे पैठ जमाने के लिए डाल रहे।

बेटा और बड़ा हुआ हाइस्कूल मे पहुंचा। बस अब एक्टिवेट हो गए पड़ौसी/पट्टीदार/रिश्तेदार। क्या फलाने का लड़का हाइस्कूल मे अच्छा रिज़ल्ट आने दो। अब बंदे के यहाँ तो 2जी कनैक्शन और पूरा मोहल्ला उसका रिज़ल्ट देख चुका है सिवाय उसके। ये भी इसलिए की बेटा अगर बाहर आए घर से तो गलत ना बता निकाल जाए और तो और प्रिंट आउट सबकी जेब मे पड़ा रहता। चलो हाइस्कूल की बात कटी।

अब इंटर्मीडियट तो बंदे की लिए डुवल डिग्री कोर्स हो जाता। स्कूल भी जाना, बोर्ड की कोचिंग भी करनी, एंट्रैन्स की तैयारी की कोचिंग भी करनी। इन सब मे उसके पास ऑप्शन भी ना होते। करनी है तो करनी है बस बाकी मैं नहीं जानता।
- अबे नालायक!! सोसाइटी मे इज्ज़त बचवानी है बाप की...???
- तू चाहता क्या है!! तुझे बस पढ़ना ही तो है...???
- अब अगर आईआईटी/सीपीएमटी नहीं निकलेगा/निकलेगी तो क्या करेगी...???
(जैसे जब आईआईटी/सीपीएमटी नहीं थे तो लोग ज़िंदा नहीं रहते थे/ मानो ये ऑक्सिजन के बॉटल हो गए हो)

फिर भी जैसे तैसे डर के/ सहम के/ बिना मन के उसने किया भी दोनों। नतीजा उसके बोर्ड मे नंबर तो कम आए ही साथ एंट्रैन्स भी गया। अब डांट देखो कैसे मिलता-
- एक काम भी ढंग से तेरा होता नहीं।
- पूरा पैसा बर्बाद करा दिया, नहीं पढ़ना था तो बताया होता।
(बल्कि वो कई बार ना पढ़ने की या दूसरा काम करने की ईक्षा जारी कर चुका था।)
- अब बता क्या करेगा तू यहाँ तो हुआ नहीं।
(जैसे मानो पूरा संकट उसके जीवन मे आईआईटी/सीपीएमटी थी। एक ही लक्ष्य था उसका अब वो बेकार है।)
- देख ऐसा कर एक साल फिर तैयारी कर हो जायेगा तेरा और मैं पैसा दे रहा न।
(फिर वही गलती/ आखिर गार्जियन समझते नहीं या समझना नहीं चाहते। वो दूसरा काम करना चाह रहा।)

सारा टेंशन घर मे खुद पैदा कर जाते। केवल यही लोग थोड़े है जो आगे बढ्ने को प्रदर्शित करते।
बड़े शौक से लोग पिक्चर हाल पहुँचते उसमे शाहरुख/सलमान की एक्टिंग की तारीफ करते। बड़े बड़े नीलामी समारोह मे शिरकत कर मकबूल-फिदा-हुसैन की पेंटिंग बोली लगा खरीद लाते और उसे बाकायदा आगे के कमरे मे लगाते। कानो मे हैड-फोन फंसाए लोग अक्सर केके/श्रेया घोषाल के आवाज़ की चर्चा करते पाये जाते।

क्या इन लोगों ने भी आईआईटी/सीपीएमटी/आईएएस पास किया। या फिर क्या ये लोग किसी से किसी भी मामले मे कम है। संघर्ष तो हर क्षेत्र मे है पर इंसान को वो करने दो जिसमे उसका मन रमता।

भगवान ने सबको अलग-अलग बना कर भेजा है, फिर क्यूँ ना हम अलग अलग लड़े...???

- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)