रात से जबर्दस्त बारिश से पूरी गाड़ी मे बाढ़ आई थी। आज मैं लखनऊ से सुबह कृषक एक्सप्रेस से वापस गोरखपुर आ रहा था। लोग स्टेशन पर उतारने को बड़े आतुर थे, पर बारिश की वजह से कोई ये जहमत उठा नहीं पा रहा था। पर ट्रेन खुलने का समय हो आया लोग किसी तरह उतरे।
स्टेशन की फ़र्स्ट क्लास गेट से जैसे ही मैंने बाहर कदम रखा तो देख एक निहायत ही गरीब ऑटो वाला। गोरखनाथ, बरगदवा गोरखनाथ, बरगदवा चिल्ला रहा था। उसे कुछ नहीं दिख रहा था ना बारिश, ना अगल-बगल के पकौड़े-समोसे कुछ भी नहीं। उसे तो बस 12 लोग चाहिए थे ताकि उन्हे पहुंचा कर वो एक नई सुबह की ओर कदम बढ़ाए।
मैं और एक महोदया ऑटो मे पहुंचे काफी देर तक हम ऑटो मे से ही देख रहे थे। वो लगातार अपनी सवारी की जुगत मे बड़ी तेज़ बारिश मे लगातार भीग रहा था। पंद्रह मिनट बीते बीस मिनट बीते कुछ कुछ लोग करके आखिर टेम्पो फुल्ल हो गया। उसके चेहरे पर मानो चमक आ गयी थी।
हमने उससे ये बात कही, "का हो भैया!! एतना तेज़ पानी मे तू भीगत बाड़ा अगर बीमार पड़ गैला त का होई"
ऑटो वाले का चेहरा मानो मुझे देखता ही रह गया। उसे लगा इस समाज मे उसका हाल खबर तो कभी ईश्वर भी नहीं लेते आखिर ये कौन है।
अभी वो कुछ आगे बोल पाता कि उसका टेम्पो का पिछला चक्का ज़ोर की आवाज़ कर फट गया।
आज उसकी किस्मत मे पैसा कमाना था ही नहीं। पर मेहनत तो उसने भरपूर की। सारी सवारी सामने की एक ऑटो, जो लगता था भगवान की खुद की बनाई भेजी दी उसमे बैठ गयी। किस्मत से उसके पास सारी सवारी आ गई।
मैंने कहाँ की क्या मैं आपके साथ चलूँ मदद कर दूँ??
पर उन्होने कहा!! अरे बाबू तू जा हमारे साथ ई हमेशा हौएला।
मैं समझ नहीं पा रहा था। उन्हे पैसा दूँ 100-200 की ना दूँ। दूँ तो कहीं बुरा ना मान जाए और ना दूँ तो मेरे मन ना माने। फिर सामने शनि देव की मंदिर के पास कुछ देर खड़ा रहा। जाने क्या-क्या अनाब-सनाब बोला था मैं ऊपर वाले को।
आखिर मेहनती को हर बार किस्मती से पीछे क्यूँ कर देते हो???
- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
मैं और एक महोदया ऑटो मे पहुंचे काफी देर तक हम ऑटो मे से ही देख रहे थे। वो लगातार अपनी सवारी की जुगत मे बड़ी तेज़ बारिश मे लगातार भीग रहा था। पंद्रह मिनट बीते बीस मिनट बीते कुछ कुछ लोग करके आखिर टेम्पो फुल्ल हो गया। उसके चेहरे पर मानो चमक आ गयी थी।
हमने उससे ये बात कही, "का हो भैया!! एतना तेज़ पानी मे तू भीगत बाड़ा अगर बीमार पड़ गैला त का होई"
ऑटो वाले का चेहरा मानो मुझे देखता ही रह गया। उसे लगा इस समाज मे उसका हाल खबर तो कभी ईश्वर भी नहीं लेते आखिर ये कौन है।
आज वो सारी बातें मुझे बताने को तैयार था। उसने चाभी लगा दी ऑटो जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी, वैसे वैसे वो अपनी पोटली मे रखे सारे गम मुझे सुनकर उसे खाली करने की जुगत मे था।
उसने बोला बबुआ, "हमार एक गो लइकिनी!! बाबा क अस्पताल मे भर्ती बा अगर हम साँझ तक ओहके खातिर 500-600 क जुगत नाही कर पाइब त दवाई क खर्चा कैसे चली??"
उसने बोला बबुआ, "हमार एक गो लइकिनी!! बाबा क अस्पताल मे भर्ती बा अगर हम साँझ तक ओहके खातिर 500-600 क जुगत नाही कर पाइब त दवाई क खर्चा कैसे चली??"
अभी वो कुछ आगे बोल पाता कि उसका टेम्पो का पिछला चक्का ज़ोर की आवाज़ कर फट गया।
आज उसकी किस्मत मे पैसा कमाना था ही नहीं। पर मेहनत तो उसने भरपूर की। सारी सवारी सामने की एक ऑटो, जो लगता था भगवान की खुद की बनाई भेजी दी उसमे बैठ गयी। किस्मत से उसके पास सारी सवारी आ गई।
मैंने कहाँ की क्या मैं आपके साथ चलूँ मदद कर दूँ??
पर उन्होने कहा!! अरे बाबू तू जा हमारे साथ ई हमेशा हौएला।
मैं समझ नहीं पा रहा था। उन्हे पैसा दूँ 100-200 की ना दूँ। दूँ तो कहीं बुरा ना मान जाए और ना दूँ तो मेरे मन ना माने। फिर सामने शनि देव की मंदिर के पास कुछ देर खड़ा रहा। जाने क्या-क्या अनाब-सनाब बोला था मैं ऊपर वाले को।
आखिर मेहनती को हर बार किस्मती से पीछे क्यूँ कर देते हो???
- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)