चाहे वो गौरव अग्रवाल आईएएस टोपर हो या सार्थक अग्रवाल सीबीएसई टोपर।
अब ये मील के पत्थर बन गए।
हर घर मे इनके ही चर्चे। हर इलाके मे इनके ही गुणगान एक तू है एक फ़लनवा अग्रवाल।
बच्चा पैदा होता नहीं की उसको मिल जाता काम। हमारे दो बेटे है एक जो पाँच महीने का है वो डोक्टर बनेगा, बड़े वाले को सोच रहा इंजीनियर बना दूँ।
बेटा बड़ा हुआ पाँच साल का उसको डाल दिया कान्वेंट मे। अंग्रेजी माध्यम मे। वो भी इसलिए नहीं कि उन्हे अपने लाडले को बड़ी अच्छा शिक्षा देनी, ये तो बस इसलिए कि बगल वाले मल्होत्रा जी का लड़का शहर के नामी स्कूल मे पढ़ता। तो सोसाइटी मे पैठ जमाने के लिए डाल रहे।
बेटा और बड़ा हुआ हाइस्कूल मे पहुंचा। बस अब एक्टिवेट हो गए पड़ौसी/पट्टीदार/रिश्तेदार। क्या फलाने का लड़का हाइस्कूल मे अच्छा रिज़ल्ट आने दो। अब बंदे के यहाँ तो 2जी कनैक्शन और पूरा मोहल्ला उसका रिज़ल्ट देख चुका है सिवाय उसके। ये भी इसलिए की बेटा अगर बाहर आए घर से तो गलत ना बता निकाल जाए और तो और प्रिंट आउट सबकी जेब मे पड़ा रहता। चलो हाइस्कूल की बात कटी।
अब इंटर्मीडियट तो बंदे की लिए डुवल डिग्री कोर्स हो जाता। स्कूल भी जाना, बोर्ड की कोचिंग भी करनी, एंट्रैन्स की तैयारी की कोचिंग भी करनी। इन सब मे उसके पास ऑप्शन भी ना होते। करनी है तो करनी है बस बाकी मैं नहीं जानता।
- अबे नालायक!! सोसाइटी मे इज्ज़त बचवानी है बाप की...???
- तू चाहता क्या है!! तुझे बस पढ़ना ही तो है...???
- अब अगर आईआईटी/सीपीएमटी नहीं निकलेगा/निकलेगी तो क्या करेगी...???
(जैसे जब आईआईटी/सीपीएमटी नहीं थे तो लोग ज़िंदा नहीं रहते थे/ मानो ये ऑक्सिजन के बॉटल हो गए हो)
फिर भी जैसे तैसे डर के/ सहम के/ बिना मन के उसने किया भी दोनों। नतीजा उसके बोर्ड मे नंबर तो कम आए ही साथ एंट्रैन्स भी गया। अब डांट देखो कैसे मिलता-
- एक काम भी ढंग से तेरा होता नहीं।
- पूरा पैसा बर्बाद करा दिया, नहीं पढ़ना था तो बताया होता।
(बल्कि वो कई बार ना पढ़ने की या दूसरा काम करने की ईक्षा जारी कर चुका था।)
- अब बता क्या करेगा तू यहाँ तो हुआ नहीं।
(जैसे मानो पूरा संकट उसके जीवन मे आईआईटी/सीपीएमटी थी। एक ही लक्ष्य था उसका अब वो बेकार है।)
- देख ऐसा कर एक साल फिर तैयारी कर हो जायेगा तेरा और मैं पैसा दे रहा न।
(फिर वही गलती/ आखिर गार्जियन समझते नहीं या समझना नहीं चाहते। वो दूसरा काम करना चाह रहा।)
सारा टेंशन घर मे खुद पैदा कर जाते। केवल यही लोग थोड़े है जो आगे बढ्ने को प्रदर्शित करते।
बड़े शौक से लोग पिक्चर हाल पहुँचते उसमे शाहरुख/सलमान की एक्टिंग की तारीफ करते। बड़े बड़े नीलामी समारोह मे शिरकत कर मकबूल-फिदा-हुसैन की पेंटिंग बोली लगा खरीद लाते और उसे बाकायदा आगे के कमरे मे लगाते। कानो मे हैड-फोन फंसाए लोग अक्सर केके/श्रेया घोषाल के आवाज़ की चर्चा करते पाये जाते।
क्या इन लोगों ने भी आईआईटी/सीपीएमटी/आईएएस पास किया। या फिर क्या ये लोग किसी से किसी भी मामले मे कम है। संघर्ष तो हर क्षेत्र मे है पर इंसान को वो करने दो जिसमे उसका मन रमता।
भगवान ने सबको अलग-अलग बना कर भेजा है, फिर क्यूँ ना हम अलग अलग लड़े...???
- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
प्रतिस्पर्धा की चकाचौंध में अंधे हो रहे सभी मां-बाप को ये प्रस्तुति पढ़ना चाहिये।।।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यश।
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपने सही एवं सार्थक बातें लिखी है.. लेकिन यह भी एक सच है कि यह जीवन का एक सरल रास्ता है. अमिताभ बच्चन या लता मंगेशकर या शाहरुख़ बनना ज्यादा कठिन एवं मुश्किल है ..
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख। समस्या तो अब ये है कि चिल्ला सभी रहे हैं, सुन कोई नहीं रहा! बेचारे बच्चे!
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