बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 26 जून 2014

रूठे ही रहे जब तक वो मनाने आए



रूठे ही रहे जब तक वो मनाने आए,
लोग बंजरों मे गुलों को बुलाने आए।

चैन अभी फंसी साँसों की लॉकेट मे,
आज जवाबो मे दिलो को लुभाने आए।

कौन रखेगा सारे सबूत जन्नत के,
देख ख्वाबो मे रीलों को सुलाने आए।

इन तपती दुपहरी मे अब आते कहाँ,
लोग छालों से मीलो को मिलाने आए।

© खामोशियाँ-२०१४/
मिश्रा राहुल (२७-जून-२०१४)

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