भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
शनिवार, 7 जून 2014
Icecream ज़िंदगी
ज़िंदगी
ice-cream के टुकड़े जैसी होती।
चाकू से काट, छोटे-बड़े
प्लेट मे सजाती रहती।
रंग बिरंगी,
अलग-अलग flavour।
मानो!!
तेवर ओढ़ रखे हो
vanila थोड़ा शांत,
strawberry बहुत गंभीर,
Butterscotch जरा गुस्सैल।
जुबान पर
ठहरती भी बस उतनी ही देर,
जीतने में इंसान मुखौटे बदलता।
©खामोशियाँ-२०१४ // मिश्रा राहुल
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ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कब होगा इंसाफ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंपोस्ट को एहमियत देने लिए शुक्रिया।
हटाएंक्या बात है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आशा जी।
हटाएंयशवंत जी शुक्रिया आजकल नयी-पुरानी हलचल पे कम आना होता।
जवाब देंहटाएंBeautiful as always Mishra ji
जवाब देंहटाएंIt is pleasure reading your poems.
wow...sweet little icecream!!
जवाब देंहटाएंखामोशियाँ पटल पर दिग्गजों का स्वागत है।
जवाब देंहटाएंamazing.....icecream
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