भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
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बुधवार, 2 जनवरी 2013
बुधवार, 28 नवंबर 2012
मरहम का वो इन्हेलर...!!!
दिल के दहलीज पर देख तो सही...
हर वक्त ही कोहरा जमा रहता...!!!
कितने यादों के छींके आ जाते जिन्हें...
बहानो के रुमाल से पोछ जाया करते...!!!
कभी कभी तो जाम कर जाते हर वो...
रास्ते दर्द के अब कहा से ला दे...
!!!...मरहम का वो इन्हेलर...!!!
हर वक्त ही कोहरा जमा रहता...!!!
कितने यादों के छींके आ जाते जिन्हें...
बहानो के रुमाल से पोछ जाया करते...!!!
कभी कभी तो जाम कर जाते हर वो...
रास्ते दर्द के अब कहा से ला दे...
!!!...मरहम का वो इन्हेलर...!!!
सोमवार, 8 अक्टूबर 2012
रात की थाल
वक्त के चौके पर निशा .... कैसे बेल रही रोटी ... !!!!!
अभी खाना खाने बैठा था की लाइट चली गई जो की उत्तर प्रदेश की आम बात हैं .. अब शायद इस धुधिया रौशनी में मैं खा कम और सोच ज्यादा रहा था...कुछ अजीब किसे लिखने पर शायद कुछ रचना का निर्माण हो जाए ... तो बात दे आखिर सोचा क्या हमने ...!!!
फुलाने को दबाये की धुधिया रौशनी थामे...
चमक गयी काली तवे पर .... !!!
बादलों में गुम होती जाती जैसे ...
एक नन्हा बच्चा
रात और दिन ...दिन और रात खेल रहा हो ... !!!
थाल भी सज गयी हो ... !!!
पर अचानक देखो ...उलट गयी थाली ....
चावल के दानो तरह सितारे छींटा गए पूरे फलक पर ... !!!
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