भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
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बुधवार, 22 मई 2013
मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013
ठण्ड की वापसी....!!!
काफी दिनों बाद आज फिर कलम में रिफिल भरा दी...और टेस्ट चेक खातिर दुकान पर ही उतार दिया चंद अल्फाज...दुकानदार बाबू कह रहे थे राहुल ठण्ड गयी अब ऐश करो...हमने भी मुंडी हिला दिया...और छाप दिया कुछ पल दिमाग इतर बितर कर रहे थे...!!!!
वापसी की तैयारी में...
ठण्ड समेट रही संन्दूक...!!!
कुछ उधारी हैं...
कुछ बकाया भी...!!!
कोपले छुपाए बैठी हैं...
गौहर ओस के...!!!
बचाना कही रो ना दे..
वर्ना छींटा जाएंगे...!!!
लौटा सड़को के चश्मे
जिन्हें छीना था तूने...!!!
रूठे चाँद को भी मना...
तेरी करतूत से खफा हैं...!!!
धरा की भी सुन ले...
मफलर बाँध लेना...!!!
अब जा ट्रेन आ गयी ...
वरना देरी हो जाएगी...!!!
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