भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
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मंगलवार, 9 अप्रैल 2013
सोमवार, 1 अप्रैल 2013
रविवार, 31 मार्च 2013
पता पूछती जिंदगी
जिंदगी मजिल का पता
पूछते बीत गयी...!!!
हर सुबह रोज निकलती
घर से ओढ ढांप के,
चौराहे पहुचते किसी
पनवडिये को देख गयी...!!!
चार तनहाइयों बाद
एक हलकी सी तबस्सुम,
ऐसी ही आवाज
मेरे कान को गूंज गयी...!!!
हमने भी देख लिया
खांचो में बसे अपने दर्द को,
बस एक बयार पुर्जा थामे
कई आसियाने लांघ गयी...!!!
इस बीच क्या हुआ
किसको बतालाये आलम,
जल्दी-जल्दी में देख
बिना चाय पीये निकल गयी...!!!
लौटकर हमने मेज पर
देखा तो पाया,
जाते जाते वो अपनी
यादें ही भूल गयी...!!!
हिम्मत नहीं कि
उड़ेल दे पिटारे उसके,
यूँ साँसे चौपत के
उसे बक्से में तह गयी...!!!
~खामोशियाँ©
~खामोशियाँ©
शुक्रवार, 29 मार्च 2013
शनिवार, 5 जनवरी 2013
आकृतियाँ...!!!
देख रहा हैं कितने दर्द से उसे ..
धुधली आकृतियों में खोया हैं क्या ..!!
चेहरा भीगा हैं तेरा अभी तक ..
छुप के तू अभी अभी रोया हैं क्या ..!!
चेहरे पर ख्वाब साफ़ लदे उभर रहे ..
उठकर भी अभी तक सोया हैं क्या ..!!
निकल आये मुसीबतों के पौधे बगीचे में ..
फिर से तूने उधर कुछ बोया हैं क्या ..!!
मातमो में लखते तेरे यादों के दरीचे ..
पुरानी बस्ती ने आज कुछ खोया हैं क्या ..!!
बुधवार, 28 नवंबर 2012
मरहम का वो इन्हेलर...!!!
दिल के दहलीज पर देख तो सही...
हर वक्त ही कोहरा जमा रहता...!!!
कितने यादों के छींके आ जाते जिन्हें...
बहानो के रुमाल से पोछ जाया करते...!!!
कभी कभी तो जाम कर जाते हर वो...
रास्ते दर्द के अब कहा से ला दे...
!!!...मरहम का वो इन्हेलर...!!!
हर वक्त ही कोहरा जमा रहता...!!!
कितने यादों के छींके आ जाते जिन्हें...
बहानो के रुमाल से पोछ जाया करते...!!!
कभी कभी तो जाम कर जाते हर वो...
रास्ते दर्द के अब कहा से ला दे...
!!!...मरहम का वो इन्हेलर...!!!
गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012
मेडिकल स्टोर....!!!
मैं खड़ा था एक मेडिकल स्टोर पर कुछ देखा ... !!!एक पीले पुरानी पर्ची थामे...
काफी भींड भाड़ सी थी ... कोलाहल रंग बिरंगी... गोलियाँ ... कैप्सूल ... टैबलेट खरीदते लोग ... !!!
उफ़ कितनी सांसत में जीते ... जीवन का मैखाना भी अजब हैं ... साकी तैयार हैं पर पैमाना ही नहीं हैं... !!!
कुछ गोंजा गया हैं उसमे ... !!!
अजीब लिखावट थी कोई ...
जैसा दर्द वैसी ही लिखावट भी ... !!!
कोई पढ़ाना चाहे तो भी पढ़ा
ना सके किसी को वो बेरुखी ... !!!
पर एक आदमी कोशिश कर रहां ...
हाँ यह हैं ऊपर के दूसरे बर्जे पर ... !!!
सामने चमकीले पत्ते में लिपटी ...
रख दिया हरी नीले पीले गोलियाँ ... !!!
कुछ भूल आया मैं शायद वहीँ पर ...
हाँ हाँ पर्ची पर अब देर हो चुकी हैं .... !!!
कोई उठा ले गया जैसे पर खैर ...
उसे भी वही दिक्कत होगी लगता हैं ... !!!
सोमवार, 24 सितंबर 2012
पूनम की रात...!!!
आज बैठा एक झील पर शाम हुए कुछ सोच रहा था...लोग अनर्गल कहते जिसे...पास था कुछ पर्चे के टुकड़े पर...एक पुरानी नीब की पेन से...छिडक छिड़क के लिखा हूँ...कुछ...!!!
इस अधेरे में भी वो....
सिसकियाँ मौजूद रहती हवाओं में...!!!
जो धुएं से लिपटे चाँद में नहाती...
हुई बह जाती हैं किसी झील में...!!!
आहट भी लहरों में...
धमनियों जैसी फडकती रहती...!!!
कोई आला थामे आये और...
नाप जाए उनको एक लिखावट में...!!!
उस पर जलकुंभी ओढ़े...
बैठी सुबह झाकती चाँद को...!!!
सिसकियाँ मौजूद रहती हवाओं में...!!!
जो धुएं से लिपटे चाँद में नहाती...
हुई बह जाती हैं किसी झील में...!!!
आहट भी लहरों में...
धमनियों जैसी फडकती रहती...!!!
कोई आला थामे आये और...
नाप जाए उनको एक लिखावट में...!!!
उस पर जलकुंभी ओढ़े...
बैठी सुबह झाकती चाँद को...!!!
अपने दर्द को बयान करने खातिर..
टकराकर लौटती बार बार...!!!
पर रोक रखती अपने जेहन में
दाबे जख्मों को ताकि निहार ले..
इस पूनम की रात को फिर आये न आये...!!!
टकराकर लौटती बार बार...!!!
पर रोक रखती अपने जेहन में
दाबे जख्मों को ताकि निहार ले..
इस पूनम की रात को फिर आये न आये...!!!
मंगलवार, 18 सितंबर 2012
प्यार का गुल...!!!
गुल सम्हाले रखे हैं बस इन्तेजार हैं उनका,
पलके बिछाए बैठे हैं बस ऐतबार हैं उनका...!!!
हर पल साख से टूटते पत्ते बिखरते धरा पर,
कि दर्द नहीं वो तो बस प्यार हैं उनका...!!!
एक अर्शे से सुनने को तरस गयी जो..
आज चौखट पर खनकता झंकार हैं उनका...!!!
बस यही जिद्द चिपक कर बैठ गयी सांझ,
कि झील में उतरा हुआ ये चाँद है उनका...!!!
हर ज़र्रे में फिसलती हैं प्यास रूह की,
बस आये तो सही कुवां पास हैं उनका...!!!
सोमवार, 27 अगस्त 2012
झील में नहाता चाँद
दिल भीगा नहीं कि अंगारे बरस गए...
ख्वाब जला नहीं कि खालिश झुलस गए...!!!
बड़ी दर्द थी बादल की ककाराहट में देख...
आंसू भी उसके दामन से सरक गए ...!!!
सूखा गया सब कैसे भी लोग संभल गए,
लूह चली इन वादियों के बौर झुलस गए...!!!
कुछ की छतरी निकली गयी इन आलमों में,
शायाद वे ही बच के कहीं बस गए...!!!
ना रहा उसकी गोद में थोडा भी पानी,
तभी यहाँ लोग कतरा कतरा को तरश गए...!!!
कब से खोज रही धरा तुझे ए चाँद..
पर तुम पहले ही किसी झील तलक उतर गए...!!!
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