मैं खड़ा था एक मेडिकल स्टोर पर कुछ देखा ... !!!एक पीले पुरानी पर्ची थामे...
काफी भींड भाड़ सी थी ... कोलाहल रंग बिरंगी... गोलियाँ ... कैप्सूल ... टैबलेट खरीदते लोग ... !!!
उफ़ कितनी सांसत में जीते ... जीवन का मैखाना भी अजब हैं ... साकी तैयार हैं पर पैमाना ही नहीं हैं... !!!
कुछ गोंजा गया हैं उसमे ... !!!
अजीब लिखावट थी कोई ...
जैसा दर्द वैसी ही लिखावट भी ... !!!
कोई पढ़ाना चाहे तो भी पढ़ा
ना सके किसी को वो बेरुखी ... !!!
पर एक आदमी कोशिश कर रहां ...
हाँ यह हैं ऊपर के दूसरे बर्जे पर ... !!!
सामने चमकीले पत्ते में लिपटी ...
रख दिया हरी नीले पीले गोलियाँ ... !!!
कुछ भूल आया मैं शायद वहीँ पर ...
हाँ हाँ पर्ची पर अब देर हो चुकी हैं .... !!!
कोई उठा ले गया जैसे पर खैर ...
उसे भी वही दिक्कत होगी लगता हैं ... !!!
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