इन आएनो में अब वो कुर्बतें भी नहीं,
अक्स झांकता हैं बहार पर दिखता ही नहीं .. !!
कुर्शिया भी तलाशती बैठने किसी को,
मेहमानों में कभी वो नजर आता ही नहीं .. !!
पलटते चले गए पन्ने अखबार के,
इश्तिहार बनी ज़िन्दगी से अब वास्ता ही नहीं .. !!
धुवे लादे हुवे अब्रा पसरे फलक पर,
परिंदों को कोई रास्ता दिखलाता ही नहीं .. !!
चाहते भटक जाए इन घने जंगलों में,
पर कोई शाम को वहा जाने देता ही नहीं...!!!
अक्स झांकता हैं बहार पर दिखता ही नहीं .. !!
कुर्शिया भी तलाशती बैठने किसी को,
मेहमानों में कभी वो नजर आता ही नहीं .. !!
पलटते चले गए पन्ने अखबार के,
इश्तिहार बनी ज़िन्दगी से अब वास्ता ही नहीं .. !!
धुवे लादे हुवे अब्रा पसरे फलक पर,
परिंदों को कोई रास्ता दिखलाता ही नहीं .. !!
चाहते भटक जाए इन घने जंगलों में,
पर कोई शाम को वहा जाने देता ही नहीं...!!!
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