बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 29 जून 2014

किक-गुड मॉर्निंग गोरखपुर



गुड मॉर्निंग गोरखपुर - राहुल के साथ

किक एक छोटा सा शब्द पर शब्द पर समेटे है जाने कितने मतलब.....!!!

आज मैं राहुल फिर हाजिर हूँ लेकर अपना पुराना कार्यक्रम "गुड मॉर्निंग गोरखपुर"

फूटबाल विश्वकप का बुखार अभी उतरा नहीं है कि ISI मार्क कि नरेंद्र मोदी सरकार ने रेल-यात्रियों को लगा दी है एक किक। वो भी ऐसी किक की गोलकीपर यात्री चार दिन से बेहोश है।

उधर सल्लू मियाँ की किक भी आज के सारे सेल्फ-स्टार्ट फिल्मों पर अकेले ही भारी पड़ रही। मुझे डर है कहीं वो अगली बार से अपनी फिल्मों के ट्रेलर पर भी टिकिट लगाने ना शुरू कर दें।

किक शब्द का ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी से मतलब निकाला जाए तो हकीकत से कोसो ही बैठता। किक शब्द का ज़िंदगी मे भी गहरा महत्व है जिसने कायदे से किक करना नहीं सीखा उसकी ज़िंदगी ही गोल हो गयी।

बच्चा पैदा होते ही पहली हरकत किक से करता। नेता लोग वादों की पोटली परिणाम के तुरंत बाद गंगा मे किक कर आते। नाम शोहरत लेने के बाद प्रीति जिंटा ने भी नेस को किक कर दिया। यूपी सरकार ने लैपटाप योजना बंद कर सैकणों फिल्मी कीड़ो को बड़ी बेरहमी से किक कर दिया।

इतने सारे किक एक्सपेर्ट होने के बावजूद जाने क्यूँ हमारा देश फूटबाल मे पीछे है। उसका एक कारण ये भी है कि बिना सुनियोजन और दिशाहीन किक कभी-कभी फूटबाल कि दिशा मोड़कर खुद के ही गोल मे चली जाती।

सोचिएगा ज़रा!!! किक या सेल्फ़स्टार्ट???

आप मोटरसाइकल कैसे स्टार्ट करते तब तक मैं राहुल मिश्रा आज्ञा लेता हूँ

गुड बाय!! हॅप्पी किक !!

अँड हॅप्पी वीकेंड!!!

- A Program by Maestro Productions

शनिवार, 28 जून 2014

ईद मुबारक



चौथ का चाँद ईद का चाँद,
ये चाँद भी जुड़वा होता है क्या।

काशी का चाँद काबे का चाँद,
ये चाँद भी जुड़वा होता है क्या।

विमल का चाँद शाहिद का चाँद,
ये चाँद भी जुड़वा होता है क्या।

सोचिएगा जरा।ईद मुबारक

©खामोशियाँ-२०१४//(२८-जून-२०१४)

गुरुवार, 26 जून 2014

रूठे ही रहे जब तक वो मनाने आए



रूठे ही रहे जब तक वो मनाने आए,
लोग बंजरों मे गुलों को बुलाने आए।

चैन अभी फंसी साँसों की लॉकेट मे,
आज जवाबो मे दिलो को लुभाने आए।

कौन रखेगा सारे सबूत जन्नत के,
देख ख्वाबो मे रीलों को सुलाने आए।

इन तपती दुपहरी मे अब आते कहाँ,
लोग छालों से मीलो को मिलाने आए।

© खामोशियाँ-२०१४/
मिश्रा राहुल (२७-जून-२०१४)

शनिवार, 21 जून 2014

आईआईटी बनाम आम-अमरूद क्षेत्र:


आजकल पेपर से लेकर टीवी वाले सब के सब आईआईटी, आईएएस की राग अलाप रहे।
चाहे वो गौरव अग्रवाल आईएएस टोपर हो या सार्थक अग्रवाल सीबीएसई टोपर।
अब ये मील के पत्थर बन गए।

हर घर मे इनके ही चर्चे। हर इलाके मे इनके ही गुणगान एक तू है एक फ़लनवा अग्रवाल।
बच्चा पैदा होता नहीं की उसको मिल जाता काम। हमारे दो बेटे है एक जो पाँच महीने का है वो डोक्टर बनेगा, बड़े वाले को सोच रहा इंजीनियर बना दूँ।

बेटा बड़ा हुआ पाँच साल का उसको डाल दिया कान्वेंट मे। अंग्रेजी माध्यम मे। वो भी इसलिए नहीं कि उन्हे अपने लाडले को बड़ी अच्छा शिक्षा देनी, ये तो बस इसलिए कि बगल वाले मल्होत्रा जी का लड़का शहर के नामी स्कूल मे पढ़ता। तो सोसाइटी मे पैठ जमाने के लिए डाल रहे।

बेटा और बड़ा हुआ हाइस्कूल मे पहुंचा। बस अब एक्टिवेट हो गए पड़ौसी/पट्टीदार/रिश्तेदार। क्या फलाने का लड़का हाइस्कूल मे अच्छा रिज़ल्ट आने दो। अब बंदे के यहाँ तो 2जी कनैक्शन और पूरा मोहल्ला उसका रिज़ल्ट देख चुका है सिवाय उसके। ये भी इसलिए की बेटा अगर बाहर आए घर से तो गलत ना बता निकाल जाए और तो और प्रिंट आउट सबकी जेब मे पड़ा रहता। चलो हाइस्कूल की बात कटी।

अब इंटर्मीडियट तो बंदे की लिए डुवल डिग्री कोर्स हो जाता। स्कूल भी जाना, बोर्ड की कोचिंग भी करनी, एंट्रैन्स की तैयारी की कोचिंग भी करनी। इन सब मे उसके पास ऑप्शन भी ना होते। करनी है तो करनी है बस बाकी मैं नहीं जानता।
- अबे नालायक!! सोसाइटी मे इज्ज़त बचवानी है बाप की...???
- तू चाहता क्या है!! तुझे बस पढ़ना ही तो है...???
- अब अगर आईआईटी/सीपीएमटी नहीं निकलेगा/निकलेगी तो क्या करेगी...???
(जैसे जब आईआईटी/सीपीएमटी नहीं थे तो लोग ज़िंदा नहीं रहते थे/ मानो ये ऑक्सिजन के बॉटल हो गए हो)

फिर भी जैसे तैसे डर के/ सहम के/ बिना मन के उसने किया भी दोनों। नतीजा उसके बोर्ड मे नंबर तो कम आए ही साथ एंट्रैन्स भी गया। अब डांट देखो कैसे मिलता-
- एक काम भी ढंग से तेरा होता नहीं।
- पूरा पैसा बर्बाद करा दिया, नहीं पढ़ना था तो बताया होता।
(बल्कि वो कई बार ना पढ़ने की या दूसरा काम करने की ईक्षा जारी कर चुका था।)
- अब बता क्या करेगा तू यहाँ तो हुआ नहीं।
(जैसे मानो पूरा संकट उसके जीवन मे आईआईटी/सीपीएमटी थी। एक ही लक्ष्य था उसका अब वो बेकार है।)
- देख ऐसा कर एक साल फिर तैयारी कर हो जायेगा तेरा और मैं पैसा दे रहा न।
(फिर वही गलती/ आखिर गार्जियन समझते नहीं या समझना नहीं चाहते। वो दूसरा काम करना चाह रहा।)

सारा टेंशन घर मे खुद पैदा कर जाते। केवल यही लोग थोड़े है जो आगे बढ्ने को प्रदर्शित करते।
बड़े शौक से लोग पिक्चर हाल पहुँचते उसमे शाहरुख/सलमान की एक्टिंग की तारीफ करते। बड़े बड़े नीलामी समारोह मे शिरकत कर मकबूल-फिदा-हुसैन की पेंटिंग बोली लगा खरीद लाते और उसे बाकायदा आगे के कमरे मे लगाते। कानो मे हैड-फोन फंसाए लोग अक्सर केके/श्रेया घोषाल के आवाज़ की चर्चा करते पाये जाते।

क्या इन लोगों ने भी आईआईटी/सीपीएमटी/आईएएस पास किया। या फिर क्या ये लोग किसी से किसी भी मामले मे कम है। संघर्ष तो हर क्षेत्र मे है पर इंसान को वो करने दो जिसमे उसका मन रमता।

भगवान ने सबको अलग-अलग बना कर भेजा है, फिर क्यूँ ना हम अलग अलग लड़े...???

- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)


मंगलवार, 17 जून 2014

ड्राफ्ट


ब्लॉग मे पड़े ड्राफ्ट
अक्सर चीखा करते।
पर हमे भी
नयी पोस्ट लिखने मे
कितना मज़ा आता।

पुरानी चीज़े,
हमेशा क्यूँ,
बोझल हो जाती।

उन्हे शायद,
तवज्जो नहीं मिलता,
कभी जैसा होता था।

- किसी ब्लॉगर से पूछिएगा ये
वाकया उनके सामने ज़रूर आया होगा।

©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल

Most Awaiting Video-Eye Donation



Script
- Misra RaahuL..
Casts- Md. Israr (मोहम्मद इसरार)........VishaaL Mishra (विशाल मिश्रा)
Misra RaahuL (मिश्रा राहुल).........Vikash Shrivastava (विकाश श्रीवास्तव)

©Maestro Production-2014

सोमवार, 9 जून 2014

बदलती ज़िंदगी



बदल रहा मौसम 
अब कुछ होने को है,
जो हुआ था कभी 
अब फिर होने को है।

यादें ठहरी कहाँ 
कुलाचे मार रही अब,
जिंदगी सारी हदें 
फिर पार करने को है।

पलकों की छांव में 
सपनों को बिठलाए,
ये मन एक बार फिर
फलक छूने को है।

©खामोशियाँ-२०१४

शनिवार, 7 जून 2014

Icecream ज़िंदगी


ज़िंदगी
ice-cream के टुकड़े जैसी होती।
चाकू से काट, छोटे-बड़े
प्लेट मे सजाती रहती।

रंग बिरंगी,
अलग-अलग flavour।

मानो!!
तेवर ओढ़ रखे हो
vanila थोड़ा शांत,
strawberry बहुत गंभीर,
Butterscotch जरा गुस्सैल।

जुबान पर
ठहरती भी बस उतनी ही देर,
जीतने में इंसान मुखौटे बदलता।

©खामोशियाँ-२०१४ // मिश्रा राहुल

ज़िंदगी जरूरी है



सुलझी ही रहती तो ज़िंदगी कैसे होती...
उलझी ही रहती तो बंदगी कैसे होती....!!! 


नाम हथेली मे छुपाए घूमते रहती...
बहकी ही रहती तो सादगी कैसे होती....!!!

चर्चे फैलते जा रहे हर-तरफ मुहल्लों मे...
हलकी ही रहती तो पेशगी कैसे होती....!!!

पसंद तो करते ही हैं तुझे सारे चेहरे....
चुटकी ही रहती तो बानगी कैसे होती...!!!


Poetry & Narration- Misra RaahuL..
Casts- Md. Israr (मोहम्मद इसरार)........VishaaL Mishra (विशाल मिश्रा)
Misra RaahuL (मिश्रा राहुल).........Vikash Shrivastava (विकाश श्रीवास्तव)

©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल

सोमवार, 2 जून 2014

एक नज़रिया


©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल   

हर रोज़ यहीं तो आता मैं...



Poetry & Narration :- Misra Raahul
Edited By :- Vishaal Mishra
Camera & Direction :- Misra Raahul & Vishaal Mishra 
Casts:- Misra Raahul & Vishaal Mishra

Poetry:-

एक सोच लिए..
एक ख्वाब लिए.... 
चेहरे पर अलग रुवाब लिए....!!! 
हर रोज़ यहीं तो आता मैं...!!!

ये बादल भी तो बढ़ते है....
फ़लक-सूरज से लड़ते है....!!!
ये रास्ते भी तो चलते है...
गलियों-चौराहो से जुडते है....!!!
उम्मीद लिए....
विश्वास लिए.....
होंठो मे अलग जवाब लिए....
हर रोज़ यहीं तो आता मैं...!!!

सपनों को जो बोते है
चट्टानों पर ही सोते है...
बेखौफ हो के जीते है....
विचलित कभी ना होते है...!!!
तरकीब लिए....
तहज़ीब लिए....
साँसों मे अलग रक़ीब लिए...
हर रोज़ यही तो आता मैं....!!!

बेबाक हो के जलते है,
मुकद्दर लेके चलते है।
बेरोक हो के पलते है,
सिकंदर लेके चलते है।
आगाज लिए...
अंजाम लिए....
लहू मे अलग सैलाब लिए....
हर रोज़ यही तो आता मैं....!!!

ज़िंदगी एक सफर है
कितने भी मील के पत्थर आए
हमे रुकना नहीं है......!!! रुकना नहीं है......!!! रुकना नहीं है......!!!

© Maestro Production Pvt. Ltd.
© खामोशियाँ २०१४