बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"
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शनिवार, 11 मई 2013

बहेलिये...


उड़्ती
हुई खामोशी..
आ बैठी कंधो पर...!!

चल घोसलो तक
छोड़ दे...!!

कहीं फिर
ना पकड़ ले जाए...!!

वो ज़ुल्मी
बहेलिए...!!

©खामोशियाँ

गुरुवार, 30 अगस्त 2012

कुछ अनछुए पहलु...!!!


एक याद तस्वीरों से लिपटी हैं...कोई पढ़ सके थो पढ़ ले...वरना मौला भी दुखों के पैमाने...सबके अलग ही अलग बनाता..दूसरा कोई किसी और के जाम नहीं निगल सकता ..."

हमने भी रख ली हैं अपनी पलकों
पर तेरी भीगे हुई ग़मगीन आँखें...!!!

जैसे गिरजे में छाई खामोसी,
और रहलो पर बैठी महीन बाहें... !!!

एक आंसू गिरा दो दृगों से दर्जे पर,
कौन पहचाने किसकी नमकीन आहें...!!!

कैसे पुकारेगा पत्थर से लिपटा वो,
जिनकी यादों से भी संगीन थी बातें....!!!"