भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
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शनिवार, 11 मई 2013
गुरुवार, 30 अगस्त 2012
कुछ अनछुए पहलु...!!!
एक याद तस्वीरों से लिपटी हैं...कोई पढ़ सके थो पढ़ ले...वरना मौला भी दुखों के पैमाने...सबके अलग ही अलग बनाता..दूसरा कोई किसी और के जाम नहीं निगल सकता ..."
हमने भी रख ली हैं अपनी पलकों
पर तेरी भीगे हुई ग़मगीन आँखें...!!!
जैसे गिरजे में छाई खामोसी,
और रहलो पर बैठी महीन बाहें... !!!
एक आंसू गिरा दो दृगों से दर्जे पर,
कौन पहचाने किसकी नमकीन आहें...!!!
कैसे पुकारेगा पत्थर से लिपटा वो,
जिनकी यादों से भी संगीन थी बातें....!!!"
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