एक याद तस्वीरों से लिपटी हैं...कोई पढ़ सके थो पढ़ ले...वरना मौला भी दुखों के पैमाने...सबके अलग ही अलग बनाता..दूसरा कोई किसी और के जाम नहीं निगल सकता ..."
हमने भी रख ली हैं अपनी पलकों
पर तेरी भीगे हुई ग़मगीन आँखें...!!!
जैसे गिरजे में छाई खामोसी,
और रहलो पर बैठी महीन बाहें... !!!
एक आंसू गिरा दो दृगों से दर्जे पर,
कौन पहचाने किसकी नमकीन आहें...!!!
कैसे पुकारेगा पत्थर से लिपटा वो,
जिनकी यादों से भी संगीन थी बातें....!!!"
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