तेरा हाथ मेरे कंधे पर यूँ पड़ जाता था,
बड़ी खामोसी से दुःख का मौसम गुज़र जाता था,
खुद का दिल तो ऐसा परिंदा था जिसके पर टूटे थे,
उड़ता रहता बादलो में और पठारों से टकरा जाता था..!!!
यूँ रात भर हम भीगे थे इन यादों की बारिशों में,
दिन भर काँटों के तारों पर फैलाकर सुखाया जाता था...!!!
गया था मैं दुनिया की बाज़ार में खरीदने,
हमको क्या पता था की किससे किसको ख़रीदा जाता था...राहुल...!!!
(हमारी डायरी का एक अंश)
बड़ी खामोसी से दुःख का मौसम गुज़र जाता था,
खुद का दिल तो ऐसा परिंदा था जिसके पर टूटे थे,
उड़ता रहता बादलो में और पठारों से टकरा जाता था..!!!
यूँ रात भर हम भीगे थे इन यादों की बारिशों में,
दिन भर काँटों के तारों पर फैलाकर सुखाया जाता था...!!!
गया था मैं दुनिया की बाज़ार में खरीदने,
हमको क्या पता था की किससे किसको ख़रीदा जाता था...राहुल...!!!
(हमारी डायरी का एक अंश)
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