बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

चला जाता था...!!!

तेरा हाथ मेरे कंधे पर यूँ पड़ जाता था,
बड़ी खामोसी से दुःख का मौसम गुज़र जाता था,
खुद का दिल तो ऐसा परिंदा था जिसके पर टूटे थे,
उड़ता रहता बादलो में और पठारों से टकरा जाता था..!!!
यूँ रात भर हम भीगे थे इन यादों की बारिशों में,
दिन भर काँटों के तारों पर फैलाकर सुखाया जाता था...!!!
गया था मैं दुनिया की बाज़ार में खरीदने,
हमको क्या पता था की किससे किसको ख़रीदा जाता था...राहुल...!!!
(हमारी डायरी का एक अंश)

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