कितने दर्द उसने चुनचुन कर मेरे झोली में डाले,
सूखती राख भी भरभर कर भी मेरे आँखों पे मारे..!!!
यूँ आग थामकर हमने दाँतों से छीला हैं रूह को,
अब भी जाने कितने बचे हैं देख ए दोस्त,
उसी दर्द की आगोश में पनपते बिन पैमानों के मैखाने...!!!
सूखती राख भी भरभर कर भी मेरे आँखों पे मारे..!!!
यूँ आग थामकर हमने दाँतों से छीला हैं रूह को,
अब भी जाने कितने बचे हैं देख ए दोस्त,
उसी दर्द की आगोश में पनपते बिन पैमानों के मैखाने...!!!
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