काल चक्र के कष्ट को...वो रख लिया तुरंन्त...!
अमृत से पहले निकला विष...उसे चढ़ा लिया तुरंन्त...!!
देव हो या निशाचर...रखते वचन तुम अत्यंत...!!
महाकाल की महिमा आगे...करू क्या मैं अभिव्यक्त...!
एक बूँद जैसा हूँ मैं...
अमृत से पहले निकला विष...उसे चढ़ा लिया तुरंन्त...!!
देव हो या निशाचर...रखते वचन तुम अत्यंत...!!
महाकाल की महिमा आगे...करू क्या मैं अभिव्यक्त...!
एक बूँद जैसा हूँ मैं...
करू कैसे वो सागर सशक्त...!!
ये पर्व हो या कोई पहर...बिन उनके होते न विरक्त...!!
एक अजीब सी उलझन है...इन कोलाहल में..!
कभी होती कभी न होती...यूँ आजकल में...!!
गम-ए-जनम दिवस छोड़कर भी...कभी बुला सुहैल को ...!
ए महादेव मत आना तू भी...और उगल दे तू उस विष को...!!
जिसने बढ़ा रखा हैं...तेरे नाजुक कंठ की तपिश को...!!
हा आज तू निकल दे...सारे कष्ट जो हमने दिए तुझे,
ये लोग हैं थोड़े भुलक्कड़,या हैं शायद गुम्मकड़..!
जाते तुझे कराने स्नान,
और भूल जाते तेरे...ताकतों का आयाम
तभी रह जाते हैं यह ताउम्र भुख्खड...!!ये पर्व हो या कोई पहर...बिन उनके होते न विरक्त...!!
एक अजीब सी उलझन है...इन कोलाहल में..!
कभी होती कभी न होती...यूँ आजकल में...!!
गम-ए-जनम दिवस छोड़कर भी...कभी बुला सुहैल को ...!
ए महादेव मत आना तू भी...और उगल दे तू उस विष को...!!
जिसने बढ़ा रखा हैं...तेरे नाजुक कंठ की तपिश को...!!
हा आज तू निकल दे...सारे कष्ट जो हमने दिए तुझे,
ये लोग हैं थोड़े भुलक्कड़,या हैं शायद गुम्मकड़..!
जाते तुझे कराने स्नान,
और भूल जाते तेरे...ताकतों का आयाम
<<<भोले नाथ आपको समर्पित >>>
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