बिन चिरागों में बैठी अमावसी रात जैसी,
दुनिया भी एक दुल्हन हैं सताई हुई...
एक जेठ की तपतपाती धुप जैसी,
मेरे मजार परके फूल सी मुरझाई हुई...
उन किरणों की तबस्सुम को लपेटे,
हंसी होंठों पे लाके दबाई हुई...
हर मुखरो को ये किताबी झलकती ,
कितना किताब्खानो तलक ये भरमाई हुई...
दुनिया भी एक दुल्हन हैं सताई हुई...
एक जेठ की तपतपाती धुप जैसी,
मेरे मजार परके फूल सी मुरझाई हुई...
उन किरणों की तबस्सुम को लपेटे,
हंसी होंठों पे लाके दबाई हुई...
हर मुखरो को ये किताबी झलकती ,
कितना किताब्खानो तलक ये भरमाई हुई...
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