जाने कितने कयानातो में भटकता रहा था मैं..!!
धुएं से लिपटे उस कालिख जैसे,
इस शब् के दायरों से चिपकता रहा था मैं...!!!
वक़्त के बांह से कटकर जो गिरा बदनसीब लम्हा,
बस उसी को थामे देख कैसे बिलखता रहा था मैं...!!!
धुएं से लिपटे उस कालिख जैसे,
इस शब् के दायरों से चिपकता रहा था मैं...!!!
वक़्त के बांह से कटकर जो गिरा बदनसीब लम्हा,
बस उसी को थामे देख कैसे बिलखता रहा था मैं...!!!
बड़ी ताजस्सुम बाद पंहुचा उन गलियों में,
तो उसमे भी उसके घर का निशान ढूढ रहा था मैं ..!!!
अब रोक लो जाके चीखती उन खामोशियों को,
बस आखों पर कान रखे ए राहुल,
बस इस पहर से उस पहर को ही ढूंढ़ता रहा था मैं...!!!
तो उसमे भी उसके घर का निशान ढूढ रहा था मैं ..!!!
अब रोक लो जाके चीखती उन खामोशियों को,
बस आखों पर कान रखे ए राहुल,
बस इस पहर से उस पहर को ही ढूंढ़ता रहा था मैं...!!!
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