शाम को बुलाया था उन्हें,
अब वो जाने कहा चले गए,
वो तो न ही आये पर देख,
अपने यादों के तराने भूल गए,
दिन होते थे जब वो बाते होती थी,
यादों तले कुछ फरियादे भी होती थी...!!!
अब थो जुगनुओं भी यूँ बेगैरत हो चले हैं,
जैसे अंधेरो की आस्तीन में खुद को सी दिए हो..!!!
चाँद भी मधिम...रात भी काली,
तारों की हो गयी हो जैसे बदहाली...!!!
अब जज्बातों की सिद्दत में कैसे रुके माली,
जब टूट रही हो उसके फूल की वो नाजुक डाली...!!!
अब वो जाने कहा चले गए,
वो तो न ही आये पर देख,
अपने यादों के तराने भूल गए,
दिन होते थे जब वो बाते होती थी,
यादों तले कुछ फरियादे भी होती थी...!!!
अब थो जुगनुओं भी यूँ बेगैरत हो चले हैं,
जैसे अंधेरो की आस्तीन में खुद को सी दिए हो..!!!
चाँद भी मधिम...रात भी काली,
तारों की हो गयी हो जैसे बदहाली...!!!
अब जज्बातों की सिद्दत में कैसे रुके माली,
जब टूट रही हो उसके फूल की वो नाजुक डाली...!!!
फिर भी...रुकते हम
देखते हम...चलते हम...!!!
जाने कितनी और दूर हैं वो बहाना,
जिसे हर वक़्त के....हर अफसाने में,
आंशुओ के धागे से पिरोते हम...!!!
देखते हम...चलते हम...!!!
जाने कितनी और दूर हैं वो बहाना,
जिसे हर वक़्त के....हर अफसाने में,
आंशुओ के धागे से पिरोते हम...!!!
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