बयार बदलती पर ये दिन तो बदलते नहीं हैं,
मुरझाये गुल अब तकियों तले जांचते नहीं हैं...!!!
कबसे बैठा ढूढ़ रहा मैं उस पीपल तले,
साए पर साए देखो अब बसते नहीं हैं...!!!
एक छुवन थी ग़मों की धूप सी छतरी ताने,
ये फौलादी बर्फ के शीले यूँ पिघलते नहीं हैं...!!!
मुरझाये गुल अब तकियों तले जांचते नहीं हैं...!!!
कबसे बैठा ढूढ़ रहा मैं उस पीपल तले,
साए पर साए देखो अब बसते नहीं हैं...!!!
एक छुवन थी ग़मों की धूप सी छतरी ताने,
ये फौलादी बर्फ के शीले यूँ पिघलते नहीं हैं...!!!
वफ़ा,रंगत,चाहत,अरमान सब हैं दमन पर,
रंग लगे उस गुलाब से अब छूटते नहीं हैं...!!!
हम तो ऐसे बदहवास से हो चले हैं,
कारवां भी ग़मों के काफिले से रूठते नहीं हैं...!!!
रंग लगे उस गुलाब से अब छूटते नहीं हैं...!!!
हम तो ऐसे बदहवास से हो चले हैं,
कारवां भी ग़मों के काफिले से रूठते नहीं हैं...!!!
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