प्यार किस्से करे अब्ब कोई आँखों को जंचता नहीं,
दिल छुपाते कहीं पर यादों से बचता नहीं,
जाने कितनी दूर आये हम सदमा झेलते,
कांच से कंकड़ बने हम अब फर्क पड़ता नहीं..
बिन गिरे बदल ही हम झुलस गए देख,
यूँ कोई आँचल तले बिजलियाँ थो रखता नहीं...
दिल छुपाते कहीं पर यादों से बचता नहीं,
जाने कितनी दूर आये हम सदमा झेलते,
कांच से कंकड़ बने हम अब फर्क पड़ता नहीं..
बिन गिरे बदल ही हम झुलस गए देख,
यूँ कोई आँचल तले बिजलियाँ थो रखता नहीं...
कैसी अजब सी खामोसी रहती शब् की फिजाओं में,
शायद हवा भी उनके बातो में अब बहकता नहीं...
उस सर्प-जोड़ो का जाने क्या हुवा कौन पूछे,
अब्ब थो सपेरा भी अपना पिटारा खोलता नहीं..
शायद हवा भी उनके बातो में अब बहकता नहीं...
उस सर्प-जोड़ो का जाने क्या हुवा कौन पूछे,
अब्ब थो सपेरा भी अपना पिटारा खोलता नहीं..
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