दिल भीगा नहीं कि अंगारे बरस गए...
ख्वाब जला नहीं कि खालिश झुलस गए...!!!
बड़ी दर्द थी बादल की ककाराहट में देख...
आंसू भी उसके दामन से सरक गए ...!!!
सूखा गया सब कैसे भी लोग संभल गए,
लूह चली इन वादियों के बौर झुलस गए...!!!
कुछ की छतरी निकली गयी इन आलमों में,
शायाद वे ही बच के कहीं बस गए...!!!
ना रहा उसकी गोद में थोडा भी पानी,
तभी यहाँ लोग कतरा कतरा को तरश गए...!!!
कब से खोज रही धरा तुझे ए चाँद..
पर तुम पहले ही किसी झील तलक उतर गए...!!!
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