प्यार किससे करे...
अब कोई आँखों को जंचता नहीं...!!!
दिल छुपाते कहीं...
दिल छुपाते कहीं...
पर यादों से वो भी बचता नहीं...!!!
जाने कितनी दूर तलक...
चले आये हम सदमा झेलते...!!!
कांच से कंकड़ बने हम...
अब कोई फर्क पड़ता नहीं..!!!
बिन बादल गिरे ही...
हम झुलस गए देख...!!!
यूँ कोई आँचल तले..
यूँ कोई आँचल तले..
बिजलियाँ तो रखता नहीं...!!!
कैसी अजब सी खामोसी...
रहती शब् की फिजाओं में...!!!
शायद हवा भी उनके...
शायद हवा भी उनके...
बातो में अब बहकता नहीं...!!!
उस सर्प-जोड़ो का जाने...
क्या हुआ कौन पूछे...!!!
अब्ब थो सपेरा भी..
अब्ब थो सपेरा भी..
अपना पिटारा खोलता नहीं..!!!
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